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युगप्रधान दादा श्री जिन दत्त सूरी

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 दादा श्री जिन दत्त सूरी द्वारा स्थापित गोत्र

युगप्रधान दादा श्री जिन दत्त सूरीजैन आचार्यो की महान परंपरा के ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र हैं. जिनशासन की एक महान परंपरा खरतरगच्छ के आप युगपुरुष हैं. जिनेश्वर सूरी से प्रारम्भ हुई इस परंपरा में नवांगी टीकाकार आचार्य अभय देव सूरी के पटटधर शिष्य वल्लभ सूरी आपके गुरु थे.

संवत ११३२ में आपका जन्म हुआ एवं ९ वर्ष की अल्प आयु में ही आपने देीक्षा ग्रहण कर वैराग्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। आप चमत्कारिक बुद्धि के धनी थे एवं अपनी प्रतिभा से सबको चमत्कृत करते हुए   अल्प समय में ही समस्त शास्त्रों में पारंगत बने. आपकी प्रतिभा, शास्त्र अभ्यास,  ,प्रवचन कला एवं सर्वोपरि वैराग्य व जिन शासन निष्ठां को देखते हुए अनेक वरिष्ठ साधुओं के रहते हुए भी आपको आचार्य पद प्रदान कर श्री जिन वल्लभ सूरी का पट्टधर नियुक्त किया गया.

आपने शासन प्रभावना के अनगिनत कार्य किये एवं अपनी तपसाधना से जिन शासन का विस्तार किया। १३०,००० (एक लाख तीस हज़ार) लोगों को प्रतिवुद्ध कर उन्हें जिन धर्म का अनुयायी बनाया एवं अनेक नवीन गोत्रों की स्थापना की. । श्री नेमिनाथ स्वामी की अधिष्ठायीका  अम्बिका देवी ने आपको युगप्रधान पद से अलंकृत किया। आप अपभ्रंश भाषा के महान कवि थे एवं चर्चरी प्रकरण, चैत्यवंदन कुलक आदि अनेक विशिष्ट ग्रंथों की रचना की. जिन शासन को आपके महान योगदान के कारण आप प्रथम दादा गुरुदेवके नाम से विस्वा विख्यात हैं एवं हज़ारों दादावाडीयां आपके यशोगाथा का गान आज भी गा रही है.

संवत १२११, आषाढ़ सुदी इग्यारस को अजमेर में आपका स्वर्गवास हुआ, मणिधारी जिन चन्द्र सूरी को आपने अपना पटटधर नियुक्य लिया जो की कालान्तर में द्वितीय दादागुरु के नाम से प्रसिद्द हुए. कल आपकी पुण्य तिथि है एवं अजमेर दादाबाड़ी में यह बड़े धूमधाम से मनाया जा .रहा है.

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Jain communities unite to protest the Judgement against Santhara

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Jain communities have been uniting to protest the Rajasthan High Court's Judgement against Santhara (Samlekhana). Samlekhana is a process of ultimate purification of Atma, the soul. Ascetics of the highest order practice this to accept death as a reality of life without fear. This can be told as death in equanimity.

Samlekhana is neither suicide nor a glorification of death. Ascetics, accept Samlekhana willingly and knowingly with any craving for life and death. He tries (practices) to remain equanimous to all pain, sorrow, craving, aversion and even to life and death. The laymen (Shravak-Shravika) also follow Santhara who is willing to purify his or her soul to a high level.

However, it seems from the judgement that this very aspect of Jainism is not addressed in the judgement. All sects of Jain community, Digambar, Shwetambar (Sthanakvasi, Terapanth, Mandir Margi) practice this as a religious (Spiritual) belief. The Jain community has been practicing this penance since time immemorial. It would be better if the court did not enter into the area of belief and faith.

Jain communities in different parts of India are uniting to protest this judgement. Jain is a peaceful and non-violent community and will take the legal way to save their religious right. The shwetambar community in Jaipur met yesterday (12 August 2015) to decide an action plan followed by a meeting of Digambar community today (August 13). A joint meeting will be organized tomorrow to decide further action plan.

Similar steps are taken  in different parts of India. Jain monks and nuns, observing their Chaturmas are also supporting the movement.  In the meantime, Gulab Chand Kataria, Home Minister, Rajasthan has come forward to support Jain community declaring that the State government will fight the case in favor of Jain community.

It is obvious that the community has to move to the Hon'ble Supreme Court to protect their religious right. And, the Jain have faith in Indian constitution that guarantees the right to religious freedom. A Supreme court judgement (1954) also supports that. Moreover, Jain is a religious minority and enjoys special rights for their religion in the constitution of India.

We urge all Jai members to act unitedly forming a joint community comprises of community leaders, scholars and legal and other professionals.

Research by Western scholars about Sallekhana

Jyoti Kothari,
Convener, Sakal Jain Samaj, Jaipur



संथारा के अधिकार के लिए इतिहास दोहराने की जरुरत

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jain unity in protest for right of santhara
संथारे के अधिकार के लिए संघर्ष में जैन एकता

 संथारा (सल्लेखना) के अधिकारके लिए जैन समाजको इतिहास दोहराने की जरुरत है. दो वर्ष पूर्व सं २०१३ में जयपुर में राष्ट्रसन्त मुनि श्री ललितप्रभसागर जी, राष्ट्रसन्त मुनि श्री चन्द्रप्रभसागर जी, एवं राष्ट्रसन्त मुनि श्री तरुणसागर जी का ऐतिहासिक सामूहिक चातुर्मास दिगम्बर - श्वेताम्बर जैन एकता के लिए मील का पत्थर का सावित हुआ था. अब जैन समाज को अपने आस्था और उपासना के अधिकार को पुनः प्राप्त करने के लिए उसी इतिहास को दोहराना होगा और जैन एकता की मिसाल फिर से कायम करनी होगी। विशेष कर २४ अगस्त, २०१५को पुरे भारत में होनेवाले सभी कार्यक्रमों में संमिलित होकर  हमारी संस्कृति को बचाने का प्रयास करना होगा।

अभी कुछ ही दिनों पूर्व, राजस्थान उच्च न्यायालयने अपने एक फैसले में प्राचीन काल से चले आ रहे संलेखना (संथारा) धर्म की आराधना पर रोक लगा दी थी एवं इसे आत्महत्या माना था।  जबकि सभी जैन आगमो एवं शास्त्रों में इसे आत्म-अवलोकन एवं आत्मलीनता माना गया है जहाँ उत्कृष्ट साधक राग-द्वेष एवं जीवन-मृत्यु की भावना से पर जा कर अपनी आध्यात्मिक विशुद्धि करता है. जैन आगमो में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है की संलेखना (संथारा) में मृत्यु की कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए, ऐसे में इसे आत्महत्या तो क्या इच्छा मृत्यु भी नहीं कहा जा सकता। 

यह निर्णय जैनो की आस्था एवं एवं धर्म की आत्मा पर प्रहार है और जैन समाज अपनी आस्था के लिए संगठित एवं सक्रीय है. इस निर्णय का विरोध पुरे भारत भर में हो रहा है एवं न्यायालयीन प्रक्रिया के अनुसार  एक पुनर्विचार याचिका भी राजस्थान उच्च न्यायालय में १८ अगस्त को दाखिल कर दी गई है.

जयपुर में श्वेताम्बर-दिगंबर समुदायकी संयुक्त सभा में एक समिति भी गठित की गई है जिसमे सभी जैन समुदायों के प्रतिनिधियों को संमिलित किया गया है जिससे जैन एकता की भावना और भी पुष्ट हुई है. इस समिति में सर्वश्री पद्मबिभूषण डी आर मेहता, विमल चन्द सुराणा, अशोक पाटनी, नवरतनमल कोठारी, नरेश सेठी, विवेक काला, हीराभाई चौधरी, राजेंद्र गोधा, विमल डागा,  एवं राजेन्द्र बरडिया जैसे गणमान्य व्यक्ति संमिलित हैं. इस पवित्र कार्य में जैन समाज के सभी समुदायों के पूज्य साधु-साध्विओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त है.

इस संदर्भ में उल्लेखनीय तथ्य ये है की राजस्थान सरकार में गृह एवं कानून मंत्रीश्री गुलाबचन्द कटारियाने जैन समुदाय को सरकार का समर्थन देने की घोषणा की है एवं कहा है की सरकार न्यायालय में जैनो के पक्ष में लड़ेगी।

आप सभी से भी निवेदन है की इस पुनीत कार्य में तन-मन-धन से सहयोग कर जैन एकता की मिशाल कायम करें एवं धर्म के प्रति अपनी आस्था का परिचय दें.

ज्योति कुमार कोठारी,
सकल जैन समाज, जयपुर

Jain communities unite to protest the Judgement against Santhara







दैनिक भास्कर में संथारा पर परिचर्चा

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Santhara Samlekhna debate at Dainik Bhaskar jyoti kothari Jaipur
Debate on Santhara at Dainik Bhaskar
दैनिक भास्कर समाचार पत्रके जयपुर कार्यालय में आज संथारा पर परिचर्चाआयोजित की गई. इस परिचर्चा में जयपुर जैन समाज के गणमान्य लोगों ने भाग ले कर इस सामयिक एवं ज्वलंत विषय पर अपने मत प्रगट किये। सभा में सर्व श्री पद्मविभूषण डी आर मेहता, डा कुसुम जैन, माननीय न्यायमूर्ति (से. नि.) जसराज चोपड़ा, ज्योति कोठारी, विमल डागा, राजेन्द्र बरडिया, अधिवक्ता हेमंत नाहटा एवं हेमंत सोगानी, मानचंद खंडेला, डा विमल जैन आदि जैन समाज के विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया एवं अपने विचार प्रस्तुत किये. इसके अतिरिक्त समाज के कई अन्य विशिष्ट व्यक्ति भी संमिलित थे.

सभा में उपस्थित लगभग सभी ने संथारा (सल्लेखना) को जैन धर्म का आवश्यक अंग बताते हुए माननीय उच्च न्यायालय के फैसले को दुर्भाग्य पूर्ण बताया। पद्मविभूषण डी आर मेहताने संथारे की व्याख्या कर कहा की जैनो की इस धार्मिक परंपरा का निर्वाह विनोबा भावेजैसे राष्ट्रपुरुष ने भी किया एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आग्रह पर भी संथारा नहीं तोडा। उन्होंने कहा की ऋषि अरविन्दने भी अपने अंतिम तीन दिन संथारे में गुजारे  थे एवं प्रसिद्द बौद्ध विद्वान एवं हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर धर्मानंद कोसाम्बीने भी संथारे पूर्वक देहत्याग किया था. अधिवक्ता हेमंत नाहटाने कहा की एक व्यक्ति जिसकी जैन धर्म में कोई आस्था न हो एवं जिसे जैन धर्म एवं परंपरा का कोई ज्ञान न हो ऐसा व्यक्ति कैसे जैन धर्म की एक प्राचीन परंपरा एवं सिद्धांत के खिलाफ याचिका दायर कर सकता है एवं कैसे न्यायाकय उसका संज्ञान ले सकता है?

डा कुसुम जैनने अपने विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य में संतरे के स्वरुप पर विस्तृत प्रकाश डाला एवं कहा की आत्महत्या आवेश में लिया गया निर्णय होता है, यह एक पलायनवादी मानसिकता का द्योतक है जबकि संथारा स्वस्थ एवं स्थिर  विवेक पूर्वक लिया गौए निर्णय है. आत्महत्या प्रायः छुप कर एवं छिपाकर किया जाता है क्योंकि यह एक निंदनीय कृत्य है जबकि संथारा सबके सामने, संवंधित व्यक्तियों की रज़ामंदी से आत्मा साधना के लिए लिया जाता है/ इसमें न जीने की न मरने की इच्छा होती है वल्कि समता पूर्वक अनिवार्य मृत्यु का सामना किया जाता है.

अधिवक्ताहेमंत सोगानीने संथारे के धार्मिक एवं कानूनी पक्षों की व्याख्या करते हुए माननीय उच्च न्यायालय के फैसले से अपनी घोर असहमति जताई।डा विमल जैनने पुरुषार्थ सिध्युपाय ग्रन्थ से उद्धरण दे कर संतरे की प्रासंगिकता को सिद्ध किया एवं कहा की सभी जैन साधकों के मन में यह मनोरथ रहता है की उसकी मृत्यु सल्लेखना व समाधी के बगैर न हो.

ज्योति कोठारीने कहा की जैन शाश्त्रों में इंगीनी मरण जैसे आत्महत्या के कुछ उपायों की चर्चा है एवं उन्हें पाप एवं दुर्गति का कारन बताते हुए उसकी भर्तस्ना की गई है, फिर वह आगम आत्महत्या को कैसे अच्छा बता सकता है? अतः संथारा (संलेखना) आत्महत्या नहीं है. उन्हों कहा की कोई वीर क्रन्तिकारी अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देता है तो क्या वो आत्महत्या है? संथारा वीरों का कार्य है जबकि आत्महत्या पलायनवादी मानसिकता के साथ किया गया कायरों का कार्य है।  साधक मुनि गण एवं विशेष योग्यता युक्त गृहस्थ साधक पहले पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, एवं चार शिक्षा व्रतों का लम्बे समय तक पालन करते हैं, ग्यारह प्रतिमाओं का अभ्यास करते हैं उसके बाद संथारा जैसे कठिन व्रत की और अग्रसर होते हैं।  उन्होंने यह भी बताया की कुछ पाश्चात्य विद्वानो ने भी इस विषय पर शोध किया है जिनमे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेम्स लैडलाने जयपुर में रहकर यह शोध किया था (देखें: रिचेस एंड रिनान्सिएसन).

माननीय न्यायमूर्ति (से. नि.) जसराज चोपड़ाने कहा की जैनो पर यह संकट की घडी है एवं जैन समाज इसका सामना करने के लिए तैयार है. उन्होने प्रश्न किया की क्या मीडिया इस कार्य में जैनो के साथ है? उन्होंने आगे कहा की न्यायालय की लड़ाई वहीँ लड़ी जाएगी एवं इसके लिए जैन समाज को संगठित हो कर काम करना होगा एवं अच्छे से अच्छे वकीलों के द्वारा इस मामले की पैरवी करवानी होगी। इसके साथ ही सरकार पर दवाव बना कर धरा ३०९ में संशोधन करवाया जा सकता है एवं संथारे को इस कणों के दायरे से बाहर रखवाया जा सकता है. इसके लिए आंदोलन का रास्ता अपनाया जा सकता हो।

कार्यक्रम का संयोजन दैनिक भास्कर, जयपुर के पत्रकार चंद्रशेखर कौशिकने किया।

ज्योति कोठारी,
सकल जैन समाज, जयपुर 

संथारा के अधिकार के लिए इतिहास दोहराने की जरुरत

Jain communities unite to protest the Judgement against Santhara







संथारे के अधिकार के लिए जैन समाज का भारतव्यापी विरोध कल

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Sallekhna Santhara Protest by Jain community against Court order
Protest in favor of Santhara (Sallekhna)

सभी जैन बंधू कृपया ध्यान रखें - संथारे (संलेखना) के अधिकारके लिए जैन समाज का भारतव्यापी विरोध कल २४ अगस्त, सोमवार को है. अपने अपने स्थान पर हो रहे विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम में जरूर भाग लें एवं अधिक से अधिक लोगों को इसके लिए प्रेरित करें यही प्रार्थना है.  दिगंबर, श्वेताम्बर, मन्दिरमार्गी, तेरापंथी, बीसपन्थी, स्थानकवासी सभी समुदाय ने एक हो करराजस्थान उच्च न्यायालय केफैसले का विरोध किया है. पुरे भारत में स्थान स्थान पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है एवं जैन समाज का प्रतिनिधि मंडल देश के कानून मंत्री श्री सदानंद गौड़ासे भी मिल चूका है.

अब कल मुख्य दिन है और भारत भर के जैन संगठनो एवं पूज्य साधु संतो ने मिल कर सामूहिक शांतिपूर्ण विरोध करने का निर्णय लिया है. कल जैन समाज के लोग अपने प्रतिष्ठानो को बंद रखेंगे, शांतिपूर्ण मौन जुलुश निकालेंगे, सरकारी अधिकारीयों को ज्ञापन देंगे, सभाएं कर अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे।

गौरतलब है की राजस्थान उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीशों ने जैन धर्म एवं आगमो के तर्क एवं उनकी भावनाओं को समझे बगैर ही संथारे को आत्म-हत्या घोषित कर इसे कानूनन अपराध ठहरा दिया। इससे पूरा जैन समाज उद्वेलित हो उठा है एवं इसका विरोध किया जा रहा है।

संलेखना जैन धर्म साधना की एक आवश्यक प्रक्रिया है एवं सभी साधक के मन में यह भावना रहती है की वह संलेखना पूर्वक ही देह-त्याग करे. प्रतिदिन रात्रि में संथारे का पाठ करते हुए वह यह भावना करता है.

संथारे के अतिचारों (दोषों) को आगम में इस प्रकार बताया गया है:
"इहलोगा संसप्पओगे, परलोगा संसप्पओगे, जीविया संसप्पओगे, मरणा संसप्पओगे, कामभोगा संसप्पओगे,"अर्थात इसलोक, परलोक से सम्बंधित किसी इच्छा से, जीने की इच्छा से अथवा मरने की इच्छा से या किसी भोग प्राप्ति की इच्छा से संलेखना (संथारा) करना दोषपूर्ण है. जीने एवं मरने की इच्छा से रहित हो कर किया गया संथारा आत्महत्या कैसे हो सकता है? वस्तुतः संथारा आत्मसाधना एवं समता, निस्पृहता की उत्कृष्ट अवस्था है जहाँ साधक जीवन और मृत्यु के पार चला जाता है. यही योगदर्शन की समाधी एवं गीता का अनासक्त योग (स्थितप्रज्ञता) है.

जैन धर्म की मूल भावना को समझे बगैर राजस्थान उच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है आशा की जा सकती है माननीय उच्चतम न्यायालय उसे अवश्य बदल देगा और जैन समाज अपनी धार्मिक भावना को अक्षुण्ण रख सकेगा।  तब तक हमें जागते रहना होगा और ये भी प्रयास करना होगा की भारत की संसद जैनो की भावना को समझते हुए धरा ३०९ में बदलाव करे एवं संथारे के अधिकार को बनाये रखे.

जयपुर में भी कल यह विरोध प्रदर्शन व्यापक रूप से होगा एवं प्रातः १० बजे रामलीला मैदान से मौन जुलुश निकाला जायेगा जो की चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया, बड़ी चौपड़, जोहरी बाजार होते हुए महावीर स्कूल, सी-स्कीम पहुंचेगा जहाँ एक बड़ी सभा को उपश्थित साधु संत एवं वक्तागण सम्बोधित करेंगे।

ज्योति कोठारी,
सकल जैन समाज, जयपुर

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संथारा के अधिकार के लिए इतिहास दोहराने की जरुरत

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दैनिक भास्कर में संथारा पर परिचर्चा

संथारे के समर्थन में मौन जुलुश में उमड़ी जैन समाज की जबरदस्त भीड़

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आज संथारे (सल्लेखना) के समर्थन में जैन समाज की जबरदस्त भीड़ मौन जुलुश में उमड़ पड़ी. राजस्थान की राजधानी जयपुरमें रामलीला मैदान से प्रारम्भ हो कर जोहरी बाजार,  चौपड़ होते हुए महावीर स्कूल प्रांगण पहुंची ये शांतिपूर्ण जुलुश। एक समय स्थिति ये थी की जुलुश का अगला सिरा जब महावीर स्कूल में था तब स्का पिछला हिस्सा ३ की मि दूर जोहरी बाजार में. १ लाख से अधिक स्त्री-पुरुषों की भीड़ को दिगंबर-श्वेताम्बर समाजके प्रमुख संतो ने सम्बोधित किया।

संथारा से संवंधित मुकद्दमे के मुख्य पक्षकार एवं आयोजन समिति के सदस्य श्री विमल डागाने सर्वप्रथम मुकद्दमे से संवंधित जानकारी दी एवं कार्यक्रम संयोजक राजेन्द्र गोधाने कार्यक्रम को सफल बनाने में मुनियों की प्रेरणा एवं जैन समाज के सभी समुदायों को कारन बताया।  दिगंबर जैन मुनि प्रसिद्द वक्ता पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जीने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा की समाज की यह जान मेदिनी बताती है की संथाराजैन धर्म का प्राण है और न्यायाधीशों को भी ऐसे विषय पर निर्णय देने के पूर्व विचार विमर्श करना चाहिए। उन्होंने कहा की यह संघर्ष की शुरुआत है और अभी लम्बा रास्ता चलना है.

इसके बाद श्वेताम्बर समाज की और से खरतर गच्छीय गणिवर्य पूज्य श्री पूर्णानंदसागरजीने अपने प्रवचन में कहा की जैन समाज भले ही भिन्न भिन्न उपासना पद्धति को अपनाता है परन्तु जब संघ पर संकट  आता है या धर्म पर आंच आती है तब सब एकजुट हो जाते हैं. और आजकी सभा इसका प्रमाण है जहाँ दिगंबर-श्वेताम्बर- स्थानकवासी-तेरापंथी-मंदिर मार्गी सब एक साथ हैं. उन्होंने कहा की कायर आत्महत्याकरते हैं और धर्मवीर संथारा। क्या सीमा पर लड़ने जानेवाले वीर सैनिकों को भी न्यायालय आत्महत्या करनेवालों की श्रेणी में रखेगा?

सभा को आचार्य श्री विशुद्धसागर जीएवं आचार्य श्री वसुनंदी जी महाराज के साथ जीवदया प्रेमी मुनि श्री मैत्रीप्रभ सागरजी का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ. इस सभा में संतों के अलावा आयोजन समिति के सदस्यों, विभिन्न संघों के प्रतिनिधियों, युवावर्ग के साथ राजनेता गण भी उपस्थित थे.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, जयपुर के संसद रामचरण बोहरा, जयपुर के महापौर निर्मल नाहटा, जनता दाल के पूर्व राष्ट्रिय महासचिव चंद्रराज सिंघवीआदि प्रमुख राजनेता थे.

जयपुर के अलावा राजस्थान के लगभग सभी छोटे बड़े शहरों जैसे जोधपुर, उदैपुर, कोटा, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, बाड़मेर आदि में जैन समाज ने मौन जुलुश निकल कर संथारा (सल्लेखना) के प्रति समर्थन व्यक्त किया। इसी तरह भारत के अन्य शहरों जैसे दिल्ली, इंदौर, सूरत, नागपुर, भोपाल, ग्वालियर आदि में भी संथारे के समर्थन में इसी प्रकार कार्यक्रम आयोजित हुए. ललितपुर में ५००० से ज्यादा लोगों ने अपने सर मुंडवा कर न्यायालय के फैसले पर अपना विरोध दर्ज़ किया।

सभी जगह भारी भीड़ होने के बाबजूद जुलुश एवं सभाएं पूरी तरह शांत एवं अनुशासित थी. आज जैन समाज ने अपनी एकजुटता की मिशाल पेश करते हुए ये बता दिया की धर्म पर आह आने पर कैसे वे सभी प्रकार के भेद भाव भुला देते हैं. पुरे भारत में एक साथ एक समय में इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन कर जैन समाज ने जो अपनी अद्भुत संगठन शक्ति का परिचय दिया वह किसी बड़े राजनैतिक दल के लिए भी ईर्ष्या का विषय हो सकता है. सबसे बड़ी बात ये है की यह पूरा आंदोलन शांतिप्रिय नागरिकों द्वारा किया गया अहिंसक एवं स्वतःस्फूर्त था. बिना किसी जोर जबरदस्ती, भय या प्रलोभन के था. कहीं से भी किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला न ही कहीं प्रशासन को शांतिभंग के लिए पुलिस आदि लगाना पड़ा.

मुझे विश्वास है की भारत की केंद्रीय एवं प्रादेशिक सरकारें इस बात को समझ कर जकैनो के धार्मिक अधिकार उन्हें लौटा कर देगी।

ज्योति कोठारी,
संयोजक, सकल जैन समाज, जयपुर

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यांत्रिक कत्लखानों- मांस निर्यात के विरोध में आंदोलन ६ दिसंबर से

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श्री श्री रविशंकर, जगतगुरु शंकराचार्य एवं मुनि श्री मैत्रीप्रभसागर 
प पू  जीवदया प्रेमी मुनि श्री मैत्रीप्रभ सागरजी महाराज यांत्रिक कत्लखानों एवं मांस निर्यात के विरोध में ६ दिसंबर से आंदोलन करेंगे. यह घोषणा उन्होंने कल ८ अक्टूबर को जयपुर के सवाई मनसिंह इन्वेस्टमेंट ग्राउंड से "हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला"के उदघाटन अवसर पर किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघद्वारा आयोजित इस मेले के उद्घाटन के अवसर पर संघ के सह सर कार्यवाहक डा कृष्णगोपाल, प्रमुख चिंतक एस गुरुमूर्ति, सेवा भारती के प्रमुख श्री गुणवंत जी कोठारी सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक पदाधिकारी मौजूद थे।  इस के अतिरिक्त देशभर से आये हुए सनातन हिन्दू धर्म के पूज्य शंकराचार्यएवं अनेक अन्य संत व बौद्ध, सिख आदि धर्मो के अनेक धर्मगुरुओं के साथ आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकरभी मंच पर आसीन थे.

ऐसे विशिष्ट अवसर एवं गणमान्य लोगों व ५० हज़ार से अधिक जनता के बीच मुनि श्री मैत्रीप्रभ सागर जी ने यह घोषणा की. उन्होंने यांत्रिक कत्लखानो से होनेवाले नुक्सान से लोगों को अवगत कराया और कहा की भारत से मांस निर्यात पर पूर्ण प्रतिवंध होना चाहिए। इसे अंजाम देने के लिए उन्होंने भगवन महावीर के दीक्षा दिवस (६ दिसम्बर, २०१५) से जयपुर से अान्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की. जीवदया प्रेमी मुनि श्री मैत्रीप्रभ सागर जी के आह्वान का उपस्थित मंचासीन संतों एवं विशाल जनसमूह ने करतल ध्वनि से स्वागत किया।

उल्लेखनीय है की  मुनि श्री मैत्रीप्रभ सागर जी ने यांत्रिक कत्लखानों के विरोध में अनेक बार अनशन किया है एवं उनके सद-प्रयासों से उत्तरप्रदेश में आठ एवं राजस्थान के दूदू में एक कत्लखाने को निरस्त किया गया. आप का जीवन अत्यंत त्याग तपस्यामय है एवं जीवन का मुख्य उद्देश्य जीवदया है. भगवान महावीर के "अहिंसा परमो धर्मः"के सिद्धांत के आधार पर चलनेवाले यह मुनि खरतर गच्छीय गणाधीश श्री मणिप्रभ सागर जी के शिष्य हैं एवं आपकी तीन सांसारिक बहाने व एक भतीजी ने भी भगवती दीक्षा अंगीकार कर साध्वियों के रूप में विचरण कर रही हैं.

हम मुनि श्री के इस प्रयास की पुनः पुनः अनुमोदना करते हैं एवं सभी जीवदया प्रेमी महानुभावों से निवेदन करते हैं की इस आंदोलन को सफल बनाने में तन मन धन से योगदान करें।

Ravishankar inaugurated Hindu Spiritual and Service Fair in Jaipur


ज्योति कोठारी,
संयोजक,
सकल जैन समाज, जयपुर

Vardhaman Infotech
A leading IT company in Jaipur
Rajasthan, India
E-mail: info@vardhamaninfotech.com



ऋषिमण्डल स्तोत्र व मन्त्र का अंतरंग गूढ़ रहस्य

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ह्रीं- ऋषिमण्डल वीजमन्त्र 
श्री ऋषिमण्डल स्तोत्र एक महाप्रभाविक स्तोत्र है एवं इसकी महिमा अपरम्पार है. इस स्तोत्र के विधिपूर्वक पाठ करने से आठ महीने के अंदर ही महा तेजस्वी अर्हत बिम्ब के दर्शन होते हैं एवं उस बिम्ब के दर्शन करनेवाला साधक आठ भव के अंदर ही मोक्ष प्राप्त करता है. इसके साथ ही वह साधक सभी प्रकार के इहलोक / परलोक सम्वन्धी भय से भी मुक्त होता है और सभी सांसारिक सुख-समृद्धि भी प्राप्त करता है.

ऐसा क्यों होता है और इस स्तोत्र व मन्त्र में ऐसी क्या चीज है इसे जानने के लिए इस के अंतरंग गूढ़ रहस्य को जानना जरूरी है. स्वयं स्त्रोत्रकर्ता ने ऋषिमण्डल स्तोत्र की पहली दो गाथा में इसका उत्तर दे दिया है.

आद्यन्ताक्षर संलक्ष्यमक्षरम्, व्याप्य यत्स्थितम्
अग्निज्वाला समं नादम्, विंदू रेखा समन्वितम्।।

अग्निज्वाला समाक्रान्तम्, मनोमल विशोधकम्
देदिप्यमानम् हृत्पद्मे, तत्पदं नौमि निर्मलम।

गाथा रहस्य: संस्कृत भाषा एवं देवनागरी लिपि का आदि अर्थात प्रथम अक्षर "अ"एवं अंतीम अक्षर "ह"है तथा इन दोनों अक्षरों को जोड़ने से बनता है "अह". अ और ह के बीच में वर्णमाला के सभी अक्षर आ जाते हैं. और सम्पूर्ण शब्दावली इन्ही अक्षरों से बनती है. अर्थात जगत के समस्त पदार्थों को इन अक्षरों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है.

जैसे अंग्रेजी भाषा में "A to Z"का अर्थ होता है सब कुछ उसी प्रकार इन दोनों अक्षरों के बीच में रहे हुए अक्षरों के विन्यास से जो बन सकता है उसका अर्थ होता है सब कुछ. अंग्रेजी भाषा का "A to Z"हिंदी/संस्कृत के "अह"का पर्यायवाची है.

संस्कृत वर्णमाला में प वर्ग अर्थात प,फ, ब, भ, एवं  म, (व्यंजन) आकाश तत्व का द्योतक है एवं म विशुद्ध आकाश तत्व है. प वर्ग के उच्चारण करते समय मुह बंद हो जाता है. अह के साथ म जुड़ने से अहम् शब्द बनता है और यह बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है. यह अर्थात सम्पूर्ण जगत एवं म (आकाश तत्व), जैसे आकाश सभी को अपने में समां लेता है; और जैसे मुह बंद होने पर अंदर गई हुई चीज अंदर ही रह जाती है वैसे ही "अहम्"में व्यक्ति सब कुछ को अपने में समाते हुए महसूस करता है.

इसका गंभीर रहस्य ये है की अहं के विकार से ग्रस्त व्यक्ति ऐसा मानता एवं चाहता है की सम्पूर्ण जगत वही है और सारा जगत उसी के इर्दगिर्द घूमता रहे. ऐसी मानसिकता वाले जीव को अहंकारी या घमंडी भी कहा जाता है.  यही अहम जीव को संसार में परिभ्रमण करवाता है और मुक्ति का द्वार बंद कर देता है.

संस्कृत भाषा में र को अग्नीवीज माना गया है, जब इस अहं शब्द में रेफ की मात्रा जुड़ जाती है तो "अर्हम"शब्द बन जाता है और जैसे अग्नि सब कुछ भस्म कर देती है उसी प्रकार अहम् में रेफ लगने का अर्थ होता है अहंकार का भष्म होना। अहंकार नष्ट होने पर ही जीव अर्हम बन जाता है अर्थात जगत पूज्य वीतराग अरिहंत हो जाता है. उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं.

ऋषिमण्डल स्तोत्र में यही दुर्लभ रहस्य छुपा हुआ है और जो व्यक्ति इसे हृदयंगम कर अपने अहम को नष्ट करता हुआ चलता है उसे किसी भी वस्तु की आकांक्षा नहीं रहती, आकांक्षा से रहित वह व्यक्ति सर्वत्र निर्भय हो कर विचरण करता है, पापबंध से रहित वह पुण्यात्मा जगत में सुख व समृद्धि प्राप्त करता है और अंत में मोक्ष रूप शास्वत सुख का वरण करता है. सम्पूर्ण कर्म का क्षय कर, समस्त दुखों से निवृत्त वह जीव परम शांति को प्राप्त होता है.

ऋषिमण्डल मन्त्र भी अरहंत के आश्रय से बना हुआ है एवं सिद्धचक्र का वीज उसमे समाहित है अतः उसके निरंतर जप, मनन, ध्यान, एवं निदिध्यासन से जीव सर्वकर्म रहित हो कर सिद्धि गति का वरण करता है. ऋषिमण्डल स्तोत्र व मन्त्र के रहस्य को इस प्रकार जान कर निरंतर इसके अभ्यास में दत्त चित्त होना इसलोक एवं परलोक के लिए श्रेयष्कर है.

जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि


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जैन समाज एवं सुचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में व्यापार की सम्भावनाएं

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जैन समाजएक प्रगतिशील, विचारवान, शिक्षित एवं समृद्ध समाज है. अपने परिश्रम, लगन एवं सूझबूझ से इस समाज ने समृद्धि के शिखर को छुआ है. अमेरिकी इतिहासकार पॉल डुंडस ने एक जगह ओसवाल जैन समाज के बारे में लिखा है की राजस्थान के सूखे मरुस्थल से खली हाथ चला हुआ इस समाज का वणिक वर्ग------------- कुछ ही वर्षों में गंगा-यमुना डेल्टा की आधी संपत्ति पर कब्ज़ा जमा लिया था. उस समय भारत ही नहीं पुरे विश्व का सबसे धनाढ्य परिवार था जगत सेठ परिवार। दिल्ली के मुग़ल बादशाह भी अक्सर उनके कर्जदार हुआ करते थे.  बीसवीं सदी के प्रथमार्ध तक भारत के व्यापार जगत में ओसवाल जैन समाज का दवदवा था परन्तु स्वतंत्रता के बाद से ही व्यापार जगत में ओसवाल समाज कमजोर होने लगा. यद्यपि यह समाज आज भी समृद्ध है परन्तु अन्य समजो के मुकाबले यह पिछड़ने लगा है.

बीसवीं सदी के शुरुआत से ही जब भारत में यांत्रिकीकरण होने लगा और भारतीय व्यापारी उसमे भागीदारी करने लगे- जैन समाज ने केवल व्यापार में ही रूचि ली और बहुत ही कम संख्या में जैन व्यापारिक घरानों ने उद्योग लगाने की राह पकड़ी। इसका फल ये हुआ पारसी, माहेश्वरी, अग्रवाल आदि समाज के लोगों में से बड़े औद्योगिल घरानों की स्थापना हुई और जैन समाज के लोग मात्र उन औद्योगिक घरानों के वितरक बन कर रह गए. हाँ, हीरा उद्योग एक ऐसा उद्योग था जिस पर जैन समाज की गहरी पकड़ थी और १९६० के दशक से आज तक केवल हीरा ही नहीं अपितु सम्पूर्ण रत्न एवं आभूषण उद्योग में जैन समाज का ही वर्चस्व है.

बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में भारत की अर्थनीति ने फिर से एक नई दिशा पकडी. पुरे विश्व में सुचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रकी धूम थी. भारत में भी इसकी बयार आने लगी. कई नए उद्यमियों ने इस क्षेत्र  में प्रवेश किया। विप्रो, इनफ़ोसिस, टीसीएस जैसी कई बड़ी बड़ी कम्पनियाँ इस क्षेत्र की की दिग्गज के रूप में सामने आई. सैंकड़ो की संख्या में माध्यम दर्ज़ की और हज़ारों छोटी कंपनियों का भी आगाज हुआ. आज सुचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लाखों की संख्या में कम्पनियाँ कार्यरत है और लगातार उज्वल भविष्य की और बढ़ रहीं हैं.

दिल्ली, मुंबई, पुणे, बंगलुरु, हैदराबाद, जैसी पारम्परिक शहरों के साथ अहमदाबाद, जयपुर, इंदौर, कोल्कता आदि शहर भी इस क्षेत्र की प्रगति से अछूते नहीं रहे. गौरतलब है की इन सभी शहरों में जैन समाज का काफी वर्चस्व है और यहाँ पर जैन समाज के बड़े व्यवसायिक घराने लम्बे समय से कार्यरत हैं. इसके बाबजूद आश्चर्य की बात ये है की सुचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में जैन व्यापारियों ने कोई विशेष कदम नहीं रखा. सही में कहा जाये तो जैन व्यापारी इस क्षेत्र की ताक़त आंकने में चूक गए.

२०१४ में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नै सरकार बनने के बाद इस उद्योग की तरक्की और भी तेज़ हो गई क्योंकि सरकार ने डिजिटल इंडिया का सपना साकार करने को अपना लक्ष्य बना लिया। अभी भी समय है, जैन व्यापारियों को अपने परंपरागत रवैय्ये को छोड़ कर नए क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देना चाहिए, अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब जैन समाज देश के आर्थिक जगत में अपनी शक्ति खो बैठेगा।

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पानी बचाने के लिए जैन समाज आगे आए और अपना धर्म निभाये

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कटगोला जैन मंदिर में तालाव, मुर्शिदाबाद 

जैन दादाबाड़ी में तालाव, कोलकाता 

जैन समाजसे मेरा निवेदन है की पानी  बचाने के लिए आगे आए और अपना धर्म निभाये। देश आज पानी के भयंकर संकट  गुजर रहा है. देश के १० राज्य सूखाग्रस्तघोषित हो चुके हैं. देश के सर्वोच्च न्यायालय एवं कई उच्च न्यायालयों ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को सूखे का संज्ञान लेकर त्वरित कार्यवाही करने  के लिए कहा है. मुंबई उच्च न्यायालय ने IPL के १३ मैचों को सूखे के कारण महाराष्ट्र  से बाहर कराने का आदेश दिया है. लातूर लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं और सरकारों को रेल भर भर कर वहां पानी भेजना पड़ रहा है.

जैन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमे पानी में जीव एवं पानी बहांने में जीव-हिंसा का पाप माना गया है और इसीलिए जैन लोग धार्मिक कारण से (परम्परागत रूप से) पानी का कम इस्तेमाल करते रहे हैं. परन्तु ऐसा देखने में आ रहा है की आज के जैन लोग भी पानी बचाने में उतने तत्पर नहीं रहे. मारवाड़ी समाज में कहावत थी  पानी को घी से भी ज्यादा संभल  खर्च करना चाहिये पर आज इस समाज में भी खूब पानी ढोला जाता है. आज जैन एवं मारवाड़ी समाज भी अन्य समाजों के जैसे पानी का दुरूपयोग करने लगा है.

पानी के महत्व को समझते हुए हमें फिर से अपनी पुरानी परम्पराओं को पुनर्जीवित करना है और जल-संरक्षणके महत्व को समझना है. जैन समाज इस नए सामाजिक क्रांतिका अग्रणी बन सकता है. मौसम विभाग ने इस वर्ष अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है यदि हम अभी से सचेत हो कर जल-संरक्षण की अपनी पुराणी विधाओं का इस्तेमाल करें तो आनेवाले कई वर्षों तक हमें पानी के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.

अनेक दादावाडियाँ, नसियां, आदि जैन समाज की धरोहर हैं जहाँ पर्याप्त जमीन है. इन स्थानों पर तालाव, कुएं, टांके आदि का निर्माण करवा कर  वर्षा जल संरक्षित किया जा सकता है. इन कामों के लिए तकनीक सहज ही उपलव्ध है, साथ ही इसमें अनेक तरह की सरकारी मदद भी मिलती है. केंद्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में इस काम के लिए बहुत बड़ी राशि का प्रवन्ध भी किया है.

आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें एवं प्रकृति से प्राप्त इस अमूल्य धन को सहेजने का प्रयत्न करें। जैन समाज इस कार्य में अग्रणी बने यही भावना है.

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जयपुर के मोहनबाड़ी में महाप्रभाविक भक्तामर महापूजन का आयोजन

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मोहनवाड़ी में निर्माणाधीन जैन मंदिर का प्रारूप


ऋषभ प्रसाद का नक्शा


मोहनवाड़ी में निर्माणाधीन जैन मंदिर का प्रारूप २ 
कल दिनांक २३ अप्रैल २०१६ को जयपुर के मोहनबाड़ी में निर्माणाधीन श्री आदिनाथ जिनालय के प्रथम पाषाण का मुहूर्त संपन्न हुआ. प्रातः ६ बजे मंत्रोच्चारण के साथ श्रीमती प्रेमबाई कमलचंद सुराणा परिवार के द्वारा प्रथम शिला रखी गई.

प्रातः ९ बजे से महाप्रभाविक भक्तामर महापूजन का आयोजन रखा गया जिसमे लगभग ३०० जोड़ों ने बैठ कर पूजा भक्ति का लाभ लिया।  इस अवसर पर नृत्य गीत आदि के माध्यम से भगवान् श्री ऋषभ देव की भक्ति की गई. विधिकारक श्री यशवंत गोलेच्छा ने विधि-विधान का सम्पूर्ण कार्यक्रम संपन्न करवाया।

इस अवसर पर जैन विद्वान ज्योति कोठारी ने भक्तामर स्तोत्र के विशिष्ट एवं अन्तर्निहित अर्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अनेक आगमों के उद्धरणों से परमात्मा के पांचों कल्याणकों का सम्वन्ध भक्तामर स्तोत्र की गाथाओं से जोड़ते हुए सारगर्भित तरीके से परमात्मा, भक्तामर स्तोत्र एवं भक्ति की विवेचना की.

 ज्योति कोठारी ने परमात्मा के आगे भक्तिवश नृत्य का महत्व बताते हुए कहा की हमारा अहंकार ही हमें प्रभु के आगे नृत्य करने से रोकता है और जो व्यक्ति जिनेश्वर देव के आगे नहीं नाचता सम्पूर्ण संसार उसे अपने इशारों पर नाचता है जबकि प्रभु के आगे नृत्य करने से व्यक्ति अहंकार और पाप कर्म के वंधनो से मुक्त होता है. उनके आह्वान पर उपस्थित सम्पूर्ण जनसमुदाय ने खड़े हो कर प्रभु के आगे नृत्य कर जिन भक्ति प्रदर्शित की.

यह सम्पूर्ण कार्यक्रम प पू मरुधर ज्योति साध्वी श्री मणिप्रभा श्री जी की निश्रा में संपन्न हुआ. प पू साध्वी श्री विद्युतप्रभा श्री जी एवं प पू साध्वी श्री हेमप्रज्ञा श्री जी ने अपने मधुर गायन से सबको मन्त्र मुग्ध किया। कार्यक्रम के अंत में साधर्मी वात्सल्य का आयोजन किया गया जिसमे बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित हुए. इस कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री प्रकश चन्द लोढ़ा का विशेष योगदान रहा.


आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें

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Popular questions about Jainism in Google search

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24 Tirthankara in a Jain symbol 

Jain Tirthankara idol 
I found these three questions very popular in Google search about Jainism and prompted to answer. These three popular questions are as follow:

1. What is the religion Jainism?
2. Who is the founder of Jainism in India?
3. What are the basic beliefs of Jainism?

I am trying to answer all three one by one.
 
1. The first question is What is the religion Jainism?

The word Jain is derived from "Jina" a Sanskrit word, that means conqueror. One, who has conquered one self, one's cravings, desires, anger, greed etc is a Jina. A Jina, after achieving omniscience, preaches the path of liberation. One who follows Jina's preaching is a Jain and doctrine o a Jina is Jainism.

2.  The second question is Who is the founder of Jainism in India?

Jainism is eternal. Hence, there is no question of any founder. However, "Tirthankara" reestablish and restrengthen basic principles of Jainism from time to time and those reestablishing the Dharma are called founder many times.

Rishabhdev Adinath is the first Tirthankara in this Avasarpini era (Half-time-cycle according to Jain faith) and Lord Mahavira is the 24th and last. Rishabhdev is a prehistoric figure whereas Mahavira is well known to modern historians. Rishabhdev is a founder of Jainism for laymen and many one mistakes Mahavira as a founder of Jainism in India.

3. The third question is What are the basic beliefs of Jainism?

As I indicated in first answer that basic goal of Jainism is liberation, liberation from all sorrows by eliminating all Karma bondage. Jainism believes that an individual Atman (Soul) moves in birth cycles and face miseries due to ignorance (Mithyatwa-Ajnyan). When that mundane soul comes into contact of an omniscient or an enlightened person and have faith on that enlightened; the mundane soul starts getting wisdom. Gradually, by virtue of A. Right view 2. Right knowledge and 3. Right conduct, he or she liberates himself or herself.

1. Ahimsa 2. Satya 3. Asteya 4. Brahmacharya and 5. Aparigraha are main five vows (Vrata) related to right conduct.


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अल्पसंख्यकों के लिए राज्य सरकार का १०० करोड़ का बजट : अतिरिक्त मुख्य सचिव

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Additional Chief secretary Rajasthan and Secretary Rajasthan Chamber of Commerce at Vardhaman Infotech
दर्शन कोठारी, के एल जैन एवं विपिन चन्द्र शर्मा छात्रों के साथ
श्री विपिन चन्द्र शर्मा, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्थान सरकार ने कहा की सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए प्रति वर्ष १०० करोड़ का बजट रखा है. श्री शर्मा ३० मई को वर्धमान इंफोटेकद्वारा आयोजित  उद्यमिता एवं प्रवंधन कौशल विकास कार्यक्रम के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. ज्ञातव्य तथ्य ये है की जैन समाज अल्पसंख्यक वर्ग में आता है. इस अवसर पर उन्होंने कहा की प्रभु के प्रति समर्पण, गुरु की आज्ञा का पालन एवं माता पिता की सेवा ये तीन चीजें ऐसी है जो किसी को सफल उद्यमी बनाती है.

वर्धमान इंफोटेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दर्शन कोठारी ने बताया की यह कार्यक्रम मेगा डिजिटल प्रोजेक्ट क्योरसिटी के साथ मिल कर किया जा रहा है. इस डिजिटल प्रोजेक्ट में ६ लाख चिकित्सकों का डेटा तैयार किया जा रहा है और उसे मरीजों के लिए उपलव्ध कराया जायेगा। क्योरसिटी के नीरज ने क्योरसिटी मेगा प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए कहा की किस तरह से इसका काम चल रहा है. उन्होंने दर्शन कोठारी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा की उनके तकनीकी एवं व्यापारिक ज्ञान की वजह से ही इस प्रोजेक्ट में गति आई है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के मानद सचिव श्री के एल जैन ने कहा की सफल उद्यमी एवं प्रवन्धक बनने के लिए विनम्र व समर्पित रहना एवं सदा पोसिटिव सोच रखना अति आवश्यक है. क्योरसिटी के मार्केटिंग अधिकारी दिवस कायथ ने कार्यक्रम का सञ्चालन किया एवं अंत में श्री ज्योति कोठारी ने सभी को धन्यवाद अर्पित किया।

Developing entrepreneurship and managerial skills at Vardhaman Infotech

 

 

महावीर स्वामी जैन मंदिर कोलकाता के १५० वर्ष

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Mahavira Swami, main idol at Kolkata Mahavira Swami temple
Mahavira Swami, Kolkata
मानिकतल्ला, कोलकाता  स्थित श्री महावीर स्वामी जैन मंदिर के १५० वर्ष पुरे होने जा रहे हैं. श्री सुखलाल जौहरी ने सं १९६८ में इस विशाल एवं सुरम्य मंदिर का निर्माण कराया था. इस तीर्थोपम परिसर में जैन दादाबाड़ी, राय बद्रीदास बहादूर मुकीम द्वारा निर्मित श्री शीतलनाथ स्वामी मंदिर एवं खारड़ परिवार द्वारा निर्मित श्री चंदाप्रभु स्वामी का मंदिर भी अवस्थित है.

श्री महावीर स्वामी का यह विशाल जिनालय अनेकों जिनविम्बों से सुशोभित होती है एवं  होने वाली अधिकांश पूजाएं भी इसी मंदिर में होती है. तीर्थोपम परिसर में होने के कारण यहाँ प्रतिदिन हज़ारों दर्शनार्थी आते हैं एवं पूजा, दर्शन कर अपना मानव जीवन सफल बनाते हैं.

समवशरण चित्र, महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता 

नक्काशी एवं कला, महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता 

सन १९६८ में माघ शुक्ल दशमी के शुभ दिन इस मंदिर की प्रतिष्ठा हुई थी और आगामी वर्ष २०१७ में माघ शुक्ल दशमी ६ फरवरी को पद रहा है. यह दिन इस मंदिर का १५० वां प्रतिष्ठा दिवस है और इसी दिन से मंदिर में ध्वज चढ़ा कर एक वर्षीय कार्यक्रम का शुभारम्भ किया जायेगा। इस समय मंदिर का विशेष रूप से शिखर के जीर्णोद्धार का काम भी चल रहा है एवं आशा है की कार्यक्रम के समय तक यह काम भी पूरा हो जायेगा। श्री चेतन कोठारी इस कार्य में विशेष रूचि ले रहे हैं.

 इस जिनालय का देखरेख इस समय श्रीमती पुतुल कोठारी परिवार द्वारा किया जा रहा है एवं  सदस्यों की भावना है की इस प्राचीन जिनालय के १५० वर्ष पूर्ती के उपलक्ष्य में भव्य कार्यक्रम रखा जाए और उसे पुरे वर्ष भर चलाया जाए. कार्यक्रम की रूपरेखा जयपुर के श्री ज्योति कोठारी एवं अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विधिकारक श्री यशवंत गोलेच्छा  मार्गदर्शन में बनाया जा रहा है।

सभी साधर्मी भाइयों से निवेदन है की इस प्राचीन जिनालय के १५० वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर होनेवाले कार्यक्रमों में अधिक से अधिक संख्या में पधार कर पुण्य लाभ अर्जित करें।

अल्पसंख्यकों के लिए राज्य सरकार का १०० करोड़ का बजट : अतिरिक्त मुख्य सचिव


पानी बचाने के लिए जैन समाज आगे आए और अपना धर्म निभाये


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जैन महिलाओं के लिए उपयोगी वेबसाईट जैन मार्केट

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जैन महिलाओं के लिए उपयोगी वेबसाईट जैन मार्केट www.jain.market 

 जैन समाज में अनेक महिलायें अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री, कपडे, हस्तकला की चीजें आदि बना कर बेचती हैं और अनेकों के लिए यह उनकी आजीविका का भी साधन होता है. कुछ महिलाएं शौक से भी ये काम करती हैं. इनके द्वारा बनाई गई खाने पीने की चीजें प्रायः शुद्ध जैन विधि से बनी हुई होती है. इसके अतिरिक्त इनलोगों के द्वारा सुन्दर,कलात्मक, एवं उपयोगी अन्य सामग्रियां  भी बनाई जाती है. लोग इन्हें खरीदना भी चाहते हैं परंतु घरेलु महिलाओं के लिए इन्हें बेचना कई बार दिक्कत का काम होता है.

जैन महिला द्वारा निर्मित मिठाई गुजिया 
           इस बात को ध्यान में रखते हुए एक नई वेबसाइट (www.jain.market) बनाई जा रही है जिसके माध्यम से ये महिलाएं अपना सामान बेच सकती हैं और कोई भी व्यक्ति इनसे सामान खरीद सकता है. यह वेबसाइट अत्याधुनिक होगा लेकिन इस बातका  भी ध्यान रखा गया है की साधारण पढ़ी लिखी घरेलु महिलाएं भी इसका इस्तेमाल कर अपना सामान बेच सकें. इसका वेब एड्रेस भी बहुत सरल है.

यह जैन महिलाओं को प्रोत्साहन देनेवाली एवं उन्हें डिजिटल प्लेटफार्म का लाभ पहुचाने वाली योजना है और जैन महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है.

आप सभी से निवेदन है की इसके बारे में अधिक से अधिक लोगों ख़ास कर महिलाओं को बताएं जिससे जैन समाज के सभी लोग उसका लाभ ले सकें। आप सभी से यह भी निवेदन है की उन्हें इस वेबसाइट में रजिस्टर करने में मदद करें क्यों की यह भी संभव है की इंटरनेट से अनजान महिलाएं भी व्यापार के क्षेत्र में कदम रखना चाहती हों.

जैन मार्केट में इस समय केवल रजिस्ट्रेसन का काम चल रहा है एवं कोई भी जैन व्यक्ति विक्रेता अथवा उपभोक्ता के रूप में इसमें रजिस्टर हो सकता है.

#जैन #जैनमार्केट #महिलाएं #खाद्य #जैनखाद्य #जैनसमाज #व्यापार
#Jain #JainMarket #Women #Food #JainFood #JainCommunity

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जयानन्द मुनि की ११ वीं पुण्यतिथि

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परम पूज्य श्री जयानन्द मुनि की ११ वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में २० सितंबर, २०१६ को मोती डूंगरी दादाबाड़ी, जयपुर में श्रीमाल सभा के तत्वावधान में भक्ति संध्या का आयोजन किया गया. परम पूज्य श्री जयानन्द मुनि खरतरगच्छीय परंपरा के अद्भुत एवं अवधूत योगी थे. भक्तिरस उनके ह्रदय के कोने कोने में छलकता था. ख़ास कर श्रीमद देवचंद जी और आनंदघन जी के भजन उन्हें बड़े प्रिय थे और वो इन्हें अक्सर गाया करते थे.

कार्यक्रम का प्रारम्भ श्री पारस महमवाल, कार्यक्रम संयोजक ने मंगलाचरण के द्वारा किया।  कोल्कता खरतर गच्छ संघ के अध्यक्ष श्री विनोद चन्द जी बोथरा एवं कोलकाता के स्वनामधन्य राय बद्रीदास बहादूर मुकीम परिवार के श्री अशोक कुमार जी मुकीम ने परम पूज्य श्री जयानन्द मुनि के आगे दीप प्रज्वलित किया.

शंखेश्वर से पधारे हुए प्रसिद्द भक्तिरस गायक मेहुल ठाकुर ने शास्त्रीय संगीत में पूज्य जयानंद जी महाराज के प्रिय भजनों का गायन किया। वाचक यशोविजय जी कृत "हम तो मगन भये प्रभु ध्यान में"श्रीमद देवचंद जी चौवीसी के भजन "जगत दिवाकर जगत कृपानिधि"ने सबका मन मोह लिया। उन्होंने आनंदघनजी कृत कई भजन भी गाये।

जयपुर के प्रसिद्द कलाकार गौरव जैन एवं उनकी पत्नी दीपशिखा जैन ने भी अच्छी प्रस्तुति दी. "झीनी रे चदरिया"एवं "पंख होते तो उड़ आती मैं" सभी को बहुत पसंद आई. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री विनय जी चोरडिया एवं विशिष्ट अतिथि श्री बाबूलाल जी दोषी व श्री कुशल चन्द जी महमवाल थे.

 भक्ति संध्या का समापन  मेहुल ठाकुर ने "म्हारा प्रभुनी वधाई बाजे छे"से की. कार्यक्रम का संचालन पारस महमवाल ने किया।

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#जयानन्द मुनि, #श्रीमददेवचंद #आनंदघन, #भक्ति संध्या #खरतरगच्छ

गणिवर्य मणिरत्नसागर हिन्दू आध्यात्मिक मेले में

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गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी हिन्दू आध्यात्मिक मेले में

मणिरत्नसागर जी हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले को संबोधित करते हुए 
परम पूज्य स्वर्गीय आचार्य श्रीमज्जिन महोदयसागर सूरीश्वर जी महाराज साहब के पट्ट शिष्य एवं खरतर गच्छाधिपति परम पूज्य आचार्य श्रीमज्जिन मणिप्रभसागर सूरीश्वर जी महाराज साहब के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी महाराज साहब ने जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में हिन्दू अध्यात्मिल एवं सेवा मेले के उद्घाटन के अवसर  पर कल २३ सितंबर को जयपुर में अपनी निश्रा प्रदान की. ओसवाल परिषद्, जयपुर के मंत्री श्री ज्योति कोठारी गणिवर्य श्री को मंच तक ले पधारे.
मणिरत्नसागर जी, दैनिक भास्कर, २४ सितंब, २०१६ 
इस अवसर पर अपने संक्षिप्त एवं सारगर्भित प्रवचन से उन्होंने सभी को प्रभावित किया. उन्होंने कहा की जैन धर्म अहिंसक धर्म है एवं प्राणीमात्र की समानता में विश्वास रखता है. उन्होंने यह भी बताया की किस प्रकार मानवता की सेवा के लिए उन्होंने राजस्थान के डांग क्षेत्र में जाटव समाज को व्यसन मुक्त बना कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा है।  आपके सान्निध्य में जाटव समाज द्वारा दिल्ली से पालीताना तक की गई ९० दिवसीय "अहिंसा यात्रा"का जिक्र समारोह के संचालक द्वारा किया गया. उन्होंने हिन्दू समाज के सभी वर्गों को जोड़ने के लिए एवं भारत की आध्यात्मिक चेतना को पुनर्जागृत करने के प्रयास के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया एवं इस के लिए शुभाशीर्वाद प्रदान किया।

समारोह में राजस्थान के माननीय राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे एवं सनातन धर्म के कई विशिष्ट संत गांव की उपस्थिति सभा का गौरव बढा रही थी. आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी, स्वामी मधुपंडित दास जी (अक्षय पात्र के संस्थापक), संवित सोमगिरि जी आदि संतों ने भी अपने प्रवचन से लोगों को लाभान्वित किया।

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Bharatiya Chikitsak Ratan award to Dr. S C Bhandari

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Bharatiya Chikitsak Ratan award to Dr. S C Bhandari

Dr. S C Bhandari, a renowned eye specialist in Jaipur has received the Bharatiya Chikitsak Ratan award at constitution club, New Delhi for his outstanding performance and services to the mankind. Global Achievers Foundation has selected Dr. Bhandari  for the award and The Economic for Health and educational Growth organized the ceremony. Ramdas Bandu Athawale, The union minister was the Chief guest at the ceremony.

Dr. S C Bhandari Receiving award 
 Dr. Bhandari had been serving at Nanavati hospital, Mumbai as an eye specialist and also acting as official eye specialist for Indian cricket team. He left the prestigious jobs and started serving humankind free of cost. He joined Amar Jain Hospital at Jaipur, a charitable healthcare institute and is serving there till date for philanthropic causes.

Congratulations to Dr. Bhandari and his family for this felicitation.

Sourav Kothari is selected for Arjuna award


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विश्वप्रसिद्ध श्री शीतलनाथ मंदिर कोलकाता का १५० वर्ष

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श्री शीतलनाथ स्वामी, मूलनायक 
राय बद्रीदास बहादुर मुकीम द्वारा कोलकाता में सं १८६७ में निर्मित विश्वप्रसिद्ध श्री शीतलनाथ मंदिर का १५० वर्ष पूरा होने जा रहा है. इस अवसर पर तीन दिवसीय भव्य कार्यक्रम का आयोजन दिनांक २६, २७, २८ फरबरी, २०१६ को किया जा रहा है.

शीतलनाथ स्वामी का भव्य मंदिर 
उल्लेखनीय है की यह भव्य मंदिर पूरी तरह कांच से बना हुआ है, और अपनी कलात्मकता के लिए विश्व में विख्यात है, यह मंदिर कोलकाता के पर्यटक मानचित्र में "पारसनाथ मंदिर"एवं "मुकीम जैन टेम्पल गार्डन"के रूप से अंकित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा लखनऊ गद्दी के श्रीपुज्य श्री कल्याण सूरी जी महाराज के कर कमलों द्वारा हुई थी. यह मंदिर श्रद्धालुओं के अतिरिक्त देशी-विदेशी पर्यटकों एवं कलाप्रेमियों के भी आकर्षण का केंद्र है. सं १९३५ में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा इस मंदिर पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।

इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है, न सिर्फ मंदिर का अंदरूनी व बाहरी भाग बल्कि साथ का बगीचा भी कांच से बना हुआ है जो इसकी सुंदरता को चार चाँद लगाता है।  सुन्दर तालाब, फव्वारे, एवं अन्य सजावट ने इसे और भी निखारा है, तभी तो पर्यटकों की आँखें इसे निहारते हुए नहीं थकती।

मंदिर के सामने लगी राय बद्रीदास बहादुर की मूर्ति
सं १९०५ में प्रकाशित "The glimpses of Bengal"में लिखा गया है की राय बद्रीदास जी ने स्वयं इस मंदिर की वास्तुकला का डिज़ाइन किया था साथ ही इसमें कांच की कलाकारी का भी. राय बद्रीदास बहादुर को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने "राय बहादुर"एवं "मुकीम"की उपाधि प्रदान की थी।  वे तत्कालीन वाइसराय के भी जोहरी थे.

महावीर स्वामी जैन मंदिर कोलकाता के १५० वर्ष


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आज से नवपद ओली का प्रारम्भ

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आज ८ अक्टूबर २०१६ से नवपद ओली (आश्विन) का प्रारम्भ हुआ और आज प्रथम पद देवाधिदेव श्री अरिहंत परमात्मा की आराधना की गई. पुरे भारत में ही नहीं विश्व के कोने कोने में जहाँ भी जैन लोग रहते हैं वहां पर पुरे उत्साह के साथ नवपद ओली की आराधना की जाती है. प्रतिवर्ष आश्विन एवं चैत्र मॉस की शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक ९ दिन ९ पदों की आराधना की जाती है.

नवपद, श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर, अजीमगंज 
जैन शास्त्रों के अनुसार श्रीपाल का कोढ़ रोग दूर करने के लिए मयनसुंदरी ने गुरुमुख से नवपद की महिमा सुन कर नवपद ओली की आराधना की थी. श्रीपाल-मैनासुन्दरी द्वारा सिद्धचक्र तंपकरने से यह जगत में प्रसिद्द हुआ और तब से बड़ी संख्या में लोग नवपद ओली की आराधना ९ दिन आयंबिल कर करते आ रहे हैं.

इन ९ दिनों में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं टप पद की आराधना की जाती है एवं इनके वर्णानुसार क्रमशः चावल, गेहूं, चना, मुंग, उडद एवं अंत के ४ दिन फिर से चावल की आयंबिल की जाती है एवं विधि पूर्वक नवपदों (सिद्धचक्र) की उपासना कर मोक्ष मार्ग को प्रशस्त किया जाता है.

अधिक जानने के लिए पढ़ें
The Navpad Oli (Ayambil) Festival of India's Jain Community 


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