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दादा श्री जिन दत्त सूरी द्वारा स्थापित गोत्र |
युगप्रधान दादा श्री जिन दत्त सूरीजैन आचार्यो की महान परंपरा के ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र हैं. जिनशासन की एक महान परंपरा खरतरगच्छ के आप युगपुरुष हैं. जिनेश्वर सूरी से प्रारम्भ हुई इस परंपरा में नवांगी टीकाकार आचार्य अभय देव सूरी के पटटधर शिष्य वल्लभ सूरी आपके गुरु थे.
संवत ११३२ में आपका जन्म हुआ एवं ९ वर्ष की अल्प आयु में ही आपने देीक्षा ग्रहण कर वैराग्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। आप चमत्कारिक बुद्धि के धनी थे एवं अपनी प्रतिभा से सबको चमत्कृत करते हुए अल्प समय में ही समस्त शास्त्रों में पारंगत बने. आपकी प्रतिभा, शास्त्र अभ्यास, ,प्रवचन कला एवं सर्वोपरि वैराग्य व जिन शासन निष्ठां को देखते हुए अनेक वरिष्ठ साधुओं के रहते हुए भी आपको आचार्य पद प्रदान कर श्री जिन वल्लभ सूरी का पट्टधर नियुक्त किया गया.
आपने शासन प्रभावना के अनगिनत कार्य किये एवं अपनी तपसाधना से जिन शासन का विस्तार किया। १३०,००० (एक लाख तीस हज़ार) लोगों को प्रतिवुद्ध कर उन्हें जिन धर्म का अनुयायी बनाया एवं अनेक नवीन गोत्रों की स्थापना की. । श्री नेमिनाथ स्वामी की अधिष्ठायीका अम्बिका देवी ने आपको युगप्रधान पद से अलंकृत किया। आप अपभ्रंश भाषा के महान कवि थे एवं चर्चरी प्रकरण, चैत्यवंदन कुलक आदि अनेक विशिष्ट ग्रंथों की रचना की. जिन शासन को आपके महान योगदान के कारण आप प्रथम दादा गुरुदेवके नाम से विस्वा विख्यात हैं एवं हज़ारों दादावाडीयां आपके यशोगाथा का गान आज भी गा रही है.
संवत १२११, आषाढ़ सुदी इग्यारस को अजमेर में आपका स्वर्गवास हुआ, मणिधारी जिन चन्द्र सूरी को आपने अपना पटटधर नियुक्य लिया जो की कालान्तर में द्वितीय दादागुरु के नाम से प्रसिद्द हुए. कल आपकी पुण्य तिथि है एवं अजमेर दादाबाड़ी में यह बड़े धूमधाम से मनाया जा .रहा है.
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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