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नेत्रदान के लिए जैन समाज आगे आये

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नेत्रदान के लिए जैन समाज आगे आये और कोर्निया अंधत्व से भारत को मुक्ति दिलाये। भारत में नेत्रहीन व्यक्तियों की संख्या लगभग १.५  करोड़ है औरउसमें से लगभग ४० लाख लोग कोर्निया अंधत्व से पीड़ित हैं जिन्हें केवल मृत व्यक्तियों द्वारा दिए गए आँखों का ही सहारा है. आधुनिक तकनीक के कारण मृत व्यक्ति के शरीर से लिए गए एक आँख से तीन व्यक्तियों को रौशनी मिल सकती है अर्थात एक व्यक्ति की दो आँखें ६ व्यक्तियों का जीवन रोशन कर सकती है.
मानव नेत्र एवं कोर्निया 

जैन धर्म कर्मवाद में विश्वास रखता है और उसके अनुसार जो दिया जाता है वही मिलता है. इसलिए इस जीवन में नेत्रदान अगले भव में अच्छे नेत्र दिला सकता है फिर इस पुनीत काम में पीछे क्यों रहना? पूरी दुनिया को सबसे ज्यादा नेत्र श्री लंका से प्राप्त होता है. श्री लंका में बौद्धों की संख्या अधिक है और बौद्ध भी जैनो की तरह कर्मफल में विश्वास रखते हैं. इसलिए वहां नेत्रदान की बहुत अच्छी परंपरा है और यह छोटा सा देश  जरूरतों को पूरा करने के बाद दुनिया भर में आँखें भेजता है - बिना किसी प्रतिदान के!!

जैन समाज भी इस काम में काफी आगे है परंतु इस भावना को और बढ़ने की आवश्यकता है. श्रीलंका की कुल जनसँख्या २ करोड़ है जो की भारत में जैनो की आवादी के बराबर है, यदि जैन लोग भी वहां के निवासियों की तरह समर्पण भाव के साथ आगे आएं तो भारत कोर्निया अन्धत्व से मुक्त हो सकता है. इसके लिए सामाजिक संगठनों  परम पूज्य आचार्य भगवंतों, साधु-साध्वी वृंदों को भी आगे आना होगा।

मुस्लिम समाज अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण नेत्रदान नहीं करता जबकि वृहत्तर हिन्दू  सनातनी समाज भी इस काम में ज्यादा आगे नहीं है. ऐसी स्थिति में जैन समाज इस काम में आगे आ कर एक मिसाल पेश कर सकता है.

इस वर्ष से कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत अभियान (CAMBA)  प्रारम्भ किया गया है और इसमें २०१८ तक भारत को इस अभिशाप से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. जैन समाज से प्रार्थना है की इस काम में पूरी शक्ति के साथ आगे आये, अपने धर्म का पालन करे और देश को नै रोशनी दे.


कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत पर गोष्ठी


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जैन समाज का अपना ऑनलाइन बाजार जैन मार्केट

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जैन मार्केट जैन समाज का अपना ऑनलाइन बाजार है. आज ऑनलाइन शॉपिंग की होड़ है और हज़ारों की तादाद में वेबसाइट इस काम के लिए उपलव्ध है, परंतु जैन समाज के लिए एक ऐसे ऑनलाइन पोर्टल की जरुरत थी जहाँ वे अपना सामान बेच सकें.



जैन समाज मूलतः एक व्यापारिक समाज है और इस समाज के लाखों लोग अपने व्यापर में संलग्न हैं. जैन व्यापारियों में परष्पर सहयोग आजकी प्रतियोगी दुनिया में बहुत आवश्यक है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए जैन मार्केटकी शुरुआत की गई है. इसमें कोई भी जैन व्यापारी अथवा उत्पादक अपना सामान बेच सकते हैं. जैन व्यापारियों की साख को देखते हुए ऐसा लगता है की अन्य समाज के लोग यहाँ खरीददारी करने जरूर आएंगे.

जैन समाज में अनेक महिलाएं घरेलु उत्पाद जैसे खाद्य सामग्री, हस्तकला की वस्तुएं आदि बना कर छोटे स्टार पर व्यापर करतीं हैं. उनके लिए भी अपना सामान बेचने के लिए जैन मार्केट बड़ा उपयोगी सावित हो रहा है. इससे वे अपना सामान पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकती हैं.

जैन समाज अपने धार्मिक, सामाजिक कार्यों के लिए बखूबी जाना जाता है. इस कार्य से सामाजिक उत्तरदायित्वों की भी पूर्ति होती है. इस वेबसाइट में पंजीकृत होना एवं अपने सामान को जोड़ना भी बहुत सरल है. अतः आपसे निवेदन है की यदि आप उत्पादक या व्यापारी हैं तो अपने आपको या अपने प्रतिष्ठान को इसमें रजिस्टर करें और यदि आप सामान्य उपभोक्ता हैं तो इस साइट से सामान की खरीद करने के लिए पंजीकृत हों. आप सभी से यह भी निवेदन है की अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें. इस साइट में पंजीकरण निःशुल्क है.

जैन महिलाओं के लिए उपयोगी वेबसाईट जैन मार्केट


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सांगानेर दादाबाड़ी: १०८ गुरु इकतीसा व पदयात्रा कार्तिक पूर्णिमा को

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जयपुर शहर की सबसे प्राचीन सांगानेर दादाबाड़ी में  कार्तिक पूर्णिमा की दोपहरी को१०८ गुरु इकतीसा का पाठ किया जाएगा। उसके बाद जयपुर के सभी श्वेताम्बर जैन मंदिरों के दर्शन हेतु तीन दिवसीय पदयात्रा होगी।
परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री मणिप्रभसागर सूरीश्वर जी के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी  महाराज साहब की निश्रा में यह सम्पूर्ण आयोजन होगा।

दादा जिनदत्त सूरी द्वारा स्थापित गोत्र 
गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी ने प्रथम दादागुरुदेव श्री जिनदत्त सूरी की विचरण भूमि तिम्मनगढ़ क्षेत्र के जैनेतरों को संस्कारित कर, उन्हें मद्यमांसादि छुड़ा कर जैन धर्म के आचरण में रंग दिया। तिम्मनगढ़, हिंडौन, करौली आदि क्षेत्र के हज़ारों की सनाख्य में जैनेतर लोगों को संस्कारित करने का महान कार्य उन्होंने किया है. उस क्षेत्र में गत वर्ष १४ नवीन  जिनमंदिरों की प्रतिष्ठा भी करवाई. नव संस्कारित जैनों को मेतारज गोत्र भी प्रदान किया गया.

प्राचीन सांगानेर जैन मंदिर का भव्य शिखर  
इन मेतारज गोत्रियों के संस्कारों को दृढ करने एवं उन्हेंजैन समाजकी मुख्यधारा से जोड़ने के लिए समय समय पर संघ यात्राओं का आयोजन किया जाता रहा है. अभी हाल ही में खरतरगच्छ सम्मलेन के दौरान भी लगभग ५०० लोगों का पैदल संघ पालीताना ले जाया गया था. इसी क्रम में इस वर्ष (सांगानेर दादाबाड़ी) कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिवसीय चैत्यपरिपाटी का आयोजन रखा गया है. कार्तिक पूर्णिमा के मेले पर आयोजित गुरुदेव की पूजा के बाद मेतारज जैनो द्वारा १०८ गुरु इकतीसा का पाठ किया जायेगा जिसमे जयपुर के साधर्मिक बंधुगण भी हर्षोल्लास से भाग लेंगे।

आप सभी इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं. प पू गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी ने इस कार्यक्रम को चातुर्मास की पूर्णाहुति पर होने वाले विशेष कार्यक्रम के रूप में बताया है और कहा है की इस में भाग लेने का विशेष लाभ है.

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Sakal Jain Samaj, Jaipur will celebrate Mahavira Jayanti on April 2, 2015

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Mahavira Swami,  Mahavira Swami temple, Kolkata
Sakal Jain Samaj, Jaipur will celebrate Mahavira Jayanti on April 2, 2015 as usual. Sakal Jain Samaj, an united forum of all Jain communities in Jaipur celebrated two major events i.e Mahavira Jayanti and Khamavani every year with great enthusiasm.

Jain ascetics of all Shwetanbar and Dogambar Jain sects participate in these events. They benefit community members with their auspicious presence and discourses. The event used to follow with Sadharmi Vatsalya (Lunch) where thousands of Jain community members get together.

Sakal Jain Samaj, Jaipur re ready to celebrate Mahavira Jayanti falling on April 2 this year 2015, birth date of Lord Mahavira, the last Tirthankara with full enthusiasm. All community members fron Swetambar and Digambar Jain sects are cordially invited in this event to show Jain unity. This is an advance invitation and complete program will be published afterwards.


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मेतारज पैदल यात्री संघ जयपुर के जैन मंदिरों में

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 परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री मणिप्रभसागर सूरीश्वर जी के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी एवं मलयरत्न सागर जी महाराज साहब की निश्रा में आज से जयपुर के सभी श्वेताम्बर जैन मंदिरों के दर्शन हेतु तीन दिवसीय पदयात्रा की शुरुआत हुई.

इस संघ ने सबसे पहले मीरा मार्ग स्थित श्वेताम्बर जैन मंदिर के दर्शन किये जहाँ पर मानसरोवर संघ द्वारा उनके लिए सुन्दर नाश्ते की व्यवस्था रखी गई. मंत्री श्री महेशचंद महमवाल एवं संघ के अन्य गणमान्य लोग वहां उपस्थित थे. इसके बाद महारानी फार्म स्थित योगाश्रम में भोजन ग्रहण कर यह पैदल संघ मालवीयनगर की ऒर रवाना हुआ जहाँ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवन के मंदिर के दर्शन किये।  यहाँ भी मंत्री श्री विमल लालवानी, कोषाध्यक्ष श्री सुरेंद्र सिपानी आदि ने पैदल संघ की अगवानी की एवं चाय आदि से उनका सत्कार किया।

पैदल संघ को संबोधित करते हुए साध्वी श्री अतुलप्रभा श्री जी महाराज 
आगे बढ़ते हुए पैदल संघ श्री वासुपूज्य स्वामी के मंदिर पंहुचा जहाँ दर्शन के पश्चात् गणिवर्य श्री मणिरत्न सागर जी महाराज साहब एवं साध्वी श्री अतुलप्रभा श्री जी ने संघ को संबोधित किया। वहां से संघ श्री नाकोड़ा पारसनाथ मंदिर पंहुचा। प्राकृत भारती परिसर में एक सभा का आयोजन किया गया जिसे गणिवर्य श्री के अतिरिक्त SEBI के पूर्व अध्यक्ष पद्मविभूषण श्री देवेन्द्रराज मेहता, श्री श्यामसुंदर विस्सा, IAS एवं ओसवाल परिषद् के सचिव ज्योति कोठारी ने सभा को संबोधित किया।

 पद्मविभूषण श्री देवेन्द्रराज मेहता, श्यामसुंदर विस्सा एवं ज्योति कोठारी 
मालवीयनगर स्थित तीनो मंदिरों के दर्शन कर यह पैदल यात्री संघ मोती डूंगरी रोड की ऒर अग्रसर हुआ और लंबी दुरी तय कर दादाबाड़ी पंहुचा। यहां पर श्री पारसनाथ भगवान्, अष्टापद तीर्थ, व नंदीश्वर द्वीप के दर्शन कर यात्रियों ने अपने जन्म सफल किये। दादाबाड़ी में गुरु इकतीस का पाठ भी किया। गणिवर्य श्री ने उन्हें जिन भक्ति का महत्व बताया और मंदिर एवं मूर्तियों का परिचय कराया। वहां स्थित साध्वीवर्या श्री मृदुला श्री जी आदि थाना २ ने गणिवर्य श्री के दर्शन वंदन किये।  दादाबाड़ी पहुचने पर श्रीमाल सभा के मंत्री श्री अनिल श्रीमाल ने उनका स्वागत किया एवं सायंकालीन भोजन का आग्रह किया।

गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी का दादाबाड़ी में उद्बोधन 
दादाबाड़ी से चल कर यह पैदल यात्री संघ श्री महावीर स्वामी मंदिर (मुल्तान मंदिर) आया जहाँ पर मंदिर एवं दादाबाड़ी के दर्शन के बाद सभी के रात्री विश्राम का कार्यक्रम रखा गया है. यहाँ भी मुल्तान संघ के मंत्री श्री नेमकुमार जी जैन उपस्थित थे.

गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी ने प्रथम दादागुरुदेव श्री जिनदत्त सूरी की विचरण भूमि तिम्मनगढ़ क्षेत्र के जैनेतरों को संस्कारित कर, उन्हें मद्यमांसादि छुड़ा कर जैन धर्म के आचरण में रंग दिया। तिम्मनगढ़, हिंडौन, करौली आदि क्षेत्र के हज़ारों की संख्या में जैनेतर लोगों को संस्कारित करने का महान कार्य उन्होंने किया है. उस क्षेत्र में गत वर्ष १४ नवीन  जिनमंदिरों की प्रतिष्ठा भी करवाई. नव संस्कारित जैनों को मेतारज गोत्र भी प्रदान किया गया.

इन मेतारज गोत्रियों के संस्कारों को दृढ करने एवं उन्हें जैन समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए समय समय पर संघ यात्राओं का आयोजन किया जाता रहा है. अभी हाल ही में खरतरगच्छ सम्मलेन के दौरान भी लगभग ५०० लोगों का पैदल संघ पालीताना ले जाया गया था.

मेतारज पैदल यात्री संघ ने दिए तीन मंदिरों के लिए ज़मीन

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मेतारज पैदल यात्री संघ  आज अपने दूसरे दिन में भी सुबह से ही भक्ति एवं आराधना में लग गया. प्रातःकाल जब सभी यात्री गैन प्रार्थना कर रहे थे उस समय पूज्य साध्वी श्री मणिप्रभा श्री जी महाराज मुल्तान मंदिर पधारीं जहाँ उन्होंने पूज्य गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी को वंदना की एवं उपस्थित यात्री संघ को संबोधित किया। जिनदर्शन, पूजा, नाश्ता आदि के बाद पूज्य गणिवर्य श्री मणिरत्नसागर जी की निश्रा में धर्मसभा प्रारम्भ हुई जिसमे गणिवर्य श्री ने इस विशेष यात्रा संघ का महत्व बताया एवं तिम्मनगढ़ क्षेत्र में हो रहे जाटव एवं अन्य जैनेतर समाजों में संस्कार आरोपण की जानकारी दी।  


इसके बाद उस क्षेत्र से पधारे हुए तीन यत्रियों ने अपनी ज़मीन जैन मंदिर बनाने हेतु समर्पित की जिसे यात्रा के संयोजक श्री ज्योति कोठारी ने स्वीकार किया। सभा में आमंत्रित जयपुर नगरपालिका के पार्षद श्री विकास कोठारी, श्री ज्योति कोठारी एवं श्री विमल भंसाली का स्वागत मुल्तान संघ के अध्यक्ष डा. कमल चन्द जैन एवं मंत्री श्री नेमकुमार जैन ने किया। ज्योति कोठारी ने बताया की जैन धर्म जन्म से नहीं अपितु कर्म से किसी का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र होना स्वीकार करता है. शुद्र कुल में उत्पन्न हरिकेशवल एवं मेटराज जैसे महामुनियों ने केवल ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य जीवन को सफल बनाया। उन्होंने आगे बताया की चार वर्ष पूर्व इन जाटवों को खरतर गच्छ संघ, जयपुर के संघमंत्री के रूप में उन्होंने मेतारजगोत्र प्रदान कर इन्हें जैन समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित किया था. 


पार्षद (वार्ड ६६) श्री विकास कोठारी ने जैन ध्वज दिखा कर पैदल यात्री संघ को रवाना किया एवं संघ वहां से चल कर श्री विजय गच्छ के मंदिर, जोहरी बाजार पंहुचा. वहां पर मंदिर के मंत्री श्री प्रकाश चन्द बांठिया ने संघ का स्वागत किया। तत्पश्चात संघ खरतर गच्छ के मुख्यालय शिवजीराम भवन पंहुचा जहाँ पर संघ मंत्री श्री अनूप पारख एवं अन्य ट्रस्टियों ने संघ का स्वागत एवं संघ पूजन किया। तत्पश्चात संघ ने आगरे वालों का मंदिर एवं श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी के बड़े मंदिर एवं श्रीमालों के मंदिर का दर्शन कर  श्री सुमतिनाथ स्वामी के मंदिर पंहुचा जहाँ पर तपागच्छ के संघमंत्री राकेश मुणोत ने अन्य ट्रस्टियों के साथ संघ का बहुमान किया। 

मोहनबाड़ी में निर्माणाधीन विशाल जिन मंदिर 
जोहरी बाजार से निकल कर लगभग तीन किलोमीटर का सफर कर मेतारज पैदल यात्री संघ मोहनबाड़ी पंहुचा जहाँ पर श्री सांवलिया पारसनाथ भगवान् एवं दादाबाड़ी के दर्शन किये। यहाँ पर उन्हें नाश्ता कराया गया एवं धर्मसभा का आयोजन किया गया. अपने उद्बोधन में गणिवर्य श्री ने खरतर गच्छ संघ, जयपुर से आग्रह किया की वे अगले संघ का आयोजन करें जिसे संघ मंत्री श्री अनूप परख ने सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा की ज्योति कोठारी से विचार विमर्श कर इसकी रूपरेखा तैयार कर ली जायेगी। 

यहाँ से रवाना हो कर मेतारज पैदल यात्री संघ महावीर साधना केंद्र, जवाहरनगर पंहुचा और वहां मंदिर एवं दादाबाड़ी के दर्शन किये। जवाहरनगर संघ के सहमंत्री श्री प्रवीण लोढा एवं अन्य ट्रस्टियों ने संघ का बहुमान किया एवं सुन्दर नाश्ते की व्यवस्था की. अंत में जनता कॉलोनी स्थित श्री सीमंधर स्वामी के मंदिर का दर्शन कर संघ अपने आवास स्थल मुल्तान मंदिर लौट आया जहाँ पर रात्रि भक्ति का आयोजन किया गया. कल प्रातः यह संघ स्टेशन मंदिर (पुंगलिया मंदिर) का दर्शन कर अपने स्थान को लौटेगा।

मेतारज पैदल यात्री संघ जयपुर के जैन मंदिरों में



जयपुर में खरतर गच्छीय मेरुरत्नसागर जी की दीक्षा संपन्न

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जयपुर के मानसरोवर स्थित मीरा मार्ग जैन मंदिर में खरतर गच्छीय प् पू गणिवर्य श्री मणिरत्न सागर जी महाराज एवं तपागच्छीय महत्तर साध्वी श्री सुमंगला श्री जी की शिष्या श्री कुसुमप्रभा श्री जी महाराज आदि ठाना  की निश्रा में बाड़मेर (हाल इरोड) निवासी श्री मोहनलाल जी बोथरा (पुत्र श्री आशुलाल जी एवं श्रीमती सीतादेवी) की छोटी दीक्षा संपन्न हुई. दीक्षा के पश्चात् दीक्षाप्रदाता गुरु गणिवर्य श्री मणिरत्न सागर जी ने  नवदीक्षित मुनि को श्री मेरुरत्नसागर का नाम दिया। नामकरण की बोली श्री महेश जी महमवाल ने ली. यह सभी कार्यक्रम खरतर गच्छाधिपति प् पू श्री मणिप्रभ सूरीश्वर जी महाराज की आज्ञा से संपन्न हुआ.

मेरुरत्नसागर जी को दीक्षा विधि कराते हुए गणिवर्य श्री मणिरत्न सागर जी 
मानसरोवर स्थित श्री आदिनाथ जिनमंदिर एवं निर्माणाधीन दादाबाड़ी प्रांगण में १० दिसम्बर २०१६, मौन एकादशी को प्रातः काल शुभ मुहूर्त में दीक्षा विधि प्रारम्भ हुई एवं गणिवर्य श्री ने स्वयं यह विधि सम्पूर्ण करवाई। सर्वप्रथम कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए मानसरोवर संघ के मंत्री श्री महेश जी महमवाल ने आगंतुकों का स्वागत किया एवं ऐसा शुभ अवसर प्रदान करने के लिए गणिवर्य श्री  का आभार व्यक्त किया।

मेरुरत्नसागर जी प्रवचन देते हुए साथ में गणिवर्य श्री मणिरत्न सागर जी
दीक्षार्थी भाई के धर्म के माता पिता बने श्री चिमन भाई रंजनबेन मेहता। यहाँ यह उल्लेखनीय है की श्री चिमनभाई स्वयं मुमुक्षु हैं.  उपस्थित श्री संघ द्वारा प्रदत्त ओघा गणिवर्य द्वारा दीक्षार्थी मुनि के हाथ में  प्रदान किया गया; ओघा ले कर नृत्य करते हुए मुनि के जयकारे से पूरा पंडाल गूंज उठा. कार्यक्रम संचालन ओसवाल परिषद्, जयपुर के मंत्री एवं खरतरगच्छ संघ के पूर्व मंत्री ज्योति कोठारी कर रहे थे।

मेरुरत्नसागर जी दीक्षा के वेश में 
इस अवसर को श्री अविनाश जी शर्मा द्वारा टीवी प्रोग्राम के लिए सूट किया गया.  मुल्तान खरतर गच्छ संघ के मंत्री श्री नेमकुमार जी जैन, मालवीयनगर संघ के मंत्री श्री मनोज बुरड़, नित्यानंदनगर संघ के अध्यक्ष श्री हरीश जी पल्लीवाल, श्यामनगर संघ के श्री विजय जी चोरडिया,  आदि जयपुर के विभिन्न संघों के पदाधिकारियों ने सभा को संबोधित किया एवं मुनि श्री के संयम ग्रहण की अनुमोदन की. इसके अतिरिक्त गुड मॉर्निंग अखबार के संपादक श्री सुरेंद्र जी जैन, मानसरोवर संघ के पूर्वमंत्री श्री नरेंद्रराज दुगड़,  सैनिक कल्याण परिषद् के अध्यक्ष श्री प्रेम सिंह जी राजपूत, शंखेश्वर मंदिर  के श्री शालिभद्र हरखावत, धर्म पिता श्री चिमन  एवं माता श्री रंजन बेन, खरतर गच्छ युवा परिषद् के श्री पदम् चौधरी, एवं संयम की भावना रखनेवाले संयम जैन ने भी सभा को संबोधित किया।

अखिल भारतीय खरतर गच्छ प्रतिनिधि महासभा की और से काम्बली ओढाते हुए श्री ज्योति कोठारी ने नवदीक्षित मुनि के सुदीर्घ आगमोक्त मुनिजीवन के लिए शुभकामनाएं दी. उपस्थित अन्य संघों की और से भी मुनि श्री को काम्बली ओढाई गई.

मुम्बई से पधारे हुए श्री दामोदर जी पल्लीवाल, भरतपुर से श्री भूपत जी जैन, सोनीपत से श्री सुब्रत जी जैन, मंडावर से श्री महावीरजी जैन आदि बहार से पधारे हुए गणमान्य व्यक्तियों ने भी सभा को संबोधित किया।

अपने उद्बोधन में गणिवर्य श्री ने बताया की श्री मोहनलाल जी सुदीर्घ काल से धर्माराधना कर रहे हैं एवं उनकी दीक्षा के समय भी वे सारथी बने थे. आपने अपने जीवन में उपधान  आराधना भी  प्रति दिन बियासने का तप करते हैं.  नवदीक्षित मुनि श्री मेरुरत्नसागर जी ने बताया की दस महीने पहले ही उनकी दीक्षा होनेवाली थी परंतु कुछ कारणों से यह उस समय संभव नहीं हो पाया। उन्होंने यह भी बताया की जीवन की क्षणभंगुरता की याद दिला कर किस प्रकार उन्होंने परिवारजनो की स्वीकृति प्राप्त की और खरतर गच्छाधिपति श्री मणिप्रभ सूरीश्वर जी महाराज की आज्ञा एवं गणिवर्य के कर कमलों द्वारा आज यह शुभ अवसर प्राप्त हुआ।  इसके बाद तपागच्छीय महत्तरा साध्वी श्री सुमंगला श्री जी की  शिष्य कुसुमप्रभा श्री जी महाराज ने भी सभा को संबोधित किया और कहा की गणिवर्य श्री का व्यवहार ही उन्हें यहाँ तक खेंच के लाया है।

अंत में संघ की उपाध्यक्षा चंद्रकांता जी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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#खरतरगच्छ, #जयपुर, #दीक्षा, #मणिप्रभसागर, #मणिरत्न सागर, #मेरुरत्नसागर,

साधुकीर्ति रचित सत्रह भेदी पूजा का अर्थ

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१६वीं सदी के विद्वान् जैन मुनि साधुकीर्ति रचित सत्रह भेदी पूजा का जैन साहित्य भंडार का अनमोल रत्न है. यह भक्ति साहित्य का उत्कृष्ट उदहारण है. इसका अर्थ गहन है और इस पूजा के शब्दार्थ एवं भावार्थ को समझना एक कठिन काम है. आज के समय में यह पूजा बहुत कम जगह गाइ जाती है परंतु इसकी उत्कृष्ट के कारण इसका संरक्षण एवं पुनःप्रचालन जैन समाज के लिए लाभकारी है. यहाँ यह भी उलेख करना प्रासंगिक होगा की साधुकीर्ति भी खरतर गच्छ परंपरा के थे जिस गच्छ के श्रीमद देवचंद ने अनेकों उत्कृष्ट भक्ति एवं आध्यात्मिक साहित्य  की रचना की है.

अजीमगंज स्थित श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर 
मेरा बचपन बंगाल प्रान्त के मुर्शिदाबाद जिले के अजीमगंजमें बीत और वहां पर यह पूजा बहु प्रचलित है. स्वाभाविक रूप से बचपन से ही यह पूजा सुनते आये हैं. सैंकड़ों बार जिसे भक्ति से गाया हो उसके प्रति अनुराग होना सहज है. इसलिए वर्षों से इच्छा थी की इसका अर्थ किया जाए जिससे लोग इसे समझ सकें और इसका आनंद उठा सकें। परंतु जब ये काम करने लगा तो पता लगा की यह काम सरल नहीं है.

यह पूजा साढ़े चार सौ साल से भी अधिक पुराना है और इतने समय में हिंदी भाषा ने अपना स्वरुप बहुत बदल लिया है, ऐसी स्थिति में शब्दों और पदों का अर्थ करना कठिन हो जाता है. दूसरी कठिनाई ये है की यह रचना बहुभाषी है. इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओँ का बहुतायत से उपयोग हुआ है. साथ ही राजस्थानी, गुजराती, ब्रज, और कहीं कहीं तो मराठी भाषा का भी प्रयोग किया गया है. हो सकता है की कुछ शब्द इसके अतिरिक्त अन्य भाषाओँ में से भी लिया गया हो. जैन साधु प्रगाढ़ पांडित्य के साथ अपनी भ्रमणशीलता के कारण विभिन्न प्रदेशों की भाषा और बोलियों से परिचित होते थे और उनका काव्यों में यात्र तत्र उपयोग करने में नहीं हिचकते थे.

साधुकीर्ति शास्त्रज्ञ होने के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के भी मर्मज्ञ विद्वान्इ थे. तत्कालीन लब्ध प्रतिष्ठ गायक एवं अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन से भी आपका घनिष्ठ परिचय था. सत्रह भेदी पूजामें उन्होंने अनेक राग-रागिनियों का इस्तेमाल किया है साथ ही संगीत की बारीकियां बतानेवाले कई श्लोक व पदों का भी समावेश इसमें किया है.

भक्ति के माध्यम से होनेवाली संवर-निर्जरा के प्रसंग और कारणों की भी पूजा में संदर्भानुसार व्याख्या की गई है. द्रव्य पूजा किस प्रकार भाव पूजा में रूपांतरित होती है उसे भी दर्शाया गया है. उपरोक्त विभिन्न कारणों से सत्रह भेदी पूजा का अर्थ करना एक दुरूह काम है. परंतु इस काम को करने की मेरी भावना मुझे लगातार इस काम को करने प्रेरणा देती रहती है.

मेरी ईस भावना में सहयोगी बनी मेरी धर्मपत्नी ममता और उसके साथ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विधिकारक श्री यशवंत गोलेच्छा। उन दोनों ने कहा की आप मौखिक अर्थ करें और हम उसे लिख लेंगे। इस तरह इस पर काम करना चालु हुआ. मैं इन दोनों का आभारी हूँ जिन्होंने इस सुन्दर काम में मुझे निरंतर सहयोग दिया।

अभी कुछ दिनों पहले एक सुन्दर संयोग हुआ जिससे यह काम तेजी से आगे बढ़ गया. आगम मर्मज्ञा विदुषी साध्वी स्व. प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्री जी महाराज की सुशिष्या एवं प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज की अज्ञानुवर्तिनी विदुषी साध्वी श्री सौम्यगुणा श्री जी, डी. लिट्, का बाड़मेर चातुर्मास था और एक शिविर में पढ़ाने के लिए मैं वहाँ गया था. मैंने उनसे कहा की सत्रह भेदी पूजा का अर्थ किया जाए और उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी. मैंने मौखिक अर्थ किया और साध्वी जी ने उसे लिखने का परिश्रम किया। जहाँ पर सटीक अर्थ नहीं बैठ रहा था या जिन शब्दों का अर्थ समझ में नहीं आ रहा था उनकी एक सूची बना ली.

अब विभिन्न माध्यमों से उन अनजाने-अनसमझे शब्दों के अर्थों की तलाश शुरू हुई और इस कार्य में मनीषी मूर्धन्य श्री सुरेंद्र जी बोथरा का पूर्ण मार्गदर्शन मुझे प्राप्त हो रहा है. मुझे विश्वास है की जल्दी ही ये काम पूरा हो जायेगा।

ज्योति कोठारी
जयपुर 

श्री महावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाता का सार्द्ध शताब्दी महोत्सव

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श्री महावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाताकी प्रतिष्ठा ईश्वी सन १८६८ में हुई और इस साल २०१७ में यह अपनी प्रतिष्ठा के डेढ़ सौवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. मंदिर के ट्रूस्टीयों ने एक वर्षव्यापी सार्द्ध शताब्दी महोत्सव मनाने का निर्णय किया है. श्री महावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाता की प्रतिष्ठा तिथी माघ शुक्ल दशमी तदनुसार अंग्रेजी तारिख ६ फरबरी, २०१७ सोमवार से कार्यक्रम प्रारम्भ होगा। उल्लेखनीय तथ्य ये है की श्री सुखलाल जी जौहरी ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था।

Mahaveer swami temple kolkata hundred and fifty years

इस उपलक्ष्य में प्रातः साढ़े आठ बजे से श्री महावीर स्वामी महापूजनपढ़ाई जाएगी एवं विजय मुहूर्त में ध्वजारोहणहोगा। जैन आगमों में प्रमुख स्थान रखनेवाले दूसरे अंग सुयगडांग सूत्र पर आधारित यह पूजा विश्व में पहली बार पढाई जाएगी। इस महापूजन में अन्य आगम ग्रंथों का भी आधार लिया गया है. इस प्रकार यह एक विशिष्ट कोटि की पूजा होगी।

Main deity Mulnayak sri mahaveera swami at kolkata
मूलनायक श्री महावीर स्वामी, कोलकाता 
इस पूजन की परिकल्पना एवं संयोजन श्री ज्योति कोठारी कर रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विधिकारक श्री यशवंत गोलेच्छा, जयपुर सम्पूर्ण विधि विधान संपन्न करवाएंगे. श्री महावीर स्वामी मंदिर के ट्रूस्टी  श्रीमती पुतुल कुमारी, वीरेंद्र, प्रदीप, राजकुमार, राजेश, चेतन, कीर्ति, धरणेन्द्र, दीपक कोठारी परिवार की और से यह सम्पूर्ण कार्यक्रम आयोजित होगा. प् पू स्व प्रवर्तिनी श्री चंद्रप्रभा श्री जी म सा की सुशिष्या श्री संयमपूर्ण श्री जी, श्री चंदनबाला श्री जी आदि ठाणा के पावन सान्निध्य में यह महापूजन पढ़ाया जायेगा।

६ फरबरी को वर्षव्यापी महोत्सव का शुभारम्भ होगा और अगले वर्ष पूर्णाहुति तक समय समय पर अन्य आयोजन होते रहेंगे। मंदिर के १५० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में पिछले २ वर्षों से मंदिर के जीर्णोद्धार एवं साज-सज्जा का काम जोरों से चल रहा है. खासकर उत्तुंग शिखर के जोर्णोद्धार एवं रंगमंडप को सुसज्जित किया जा रहा है.

Mahavira Swami Jain Temple in Kolkata


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150 years' celebration of Mahavira Swami temple, Kolkata

श्रीपूज्य श्री जिन विजयेंद्र सूरी जन्म शताब्दी

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श्रीपूज्य श्री जिन विजयेंद्र सूरी जी बीकानेर गद्दी के श्रीपूज्यों की परंपरा के महान संत थे. उनका सरल स्वभाव, उज्वल चरित्र एवं सर्वोपरि जिन धर्म के प्रति उनकी निष्ठां अतुलनीय थी. खरतर गच्छ में श्रीपूज्यों की कई गद्दियां थी जिनमे से बीकानेर, जयपुर एवं लखनऊ की गद्दिया विशेष रूप से प्रसिद्द थी. इन सबमे भी बीकानेर की गद्दी का सबसे महत्वपूर स्थान था एवं इनके अनुयायी भारत में दूर दूर तक फैले हुए थे.

बीकानेर के रांगड़ी चौक स्थित बड़ा उपाश्रयइसका मुख्य स्थल था जहाँ पर श्रीपूज्य जी के अतिरिक्त अनेक यतिगण निवास करते थे. उस समय के यतिगण जैन शास्त्रों के अतिरिक्त विधि-विधान, ज्योतिष, मन्त्र, चिकित्सा आदि के भी ज्ञाता होते थे. समाज में इनकी काफी उपयोगिता थी और ये जान साधारण के संकट मोचक के रूप में माने जाते थे. इन लोगों ने विभिन्न विषयों पर बड़े पैमाने पर साहित्य की भी रचना की है. इन सभी यतियों के सिरमौर श्रीपुज्य जी हुआ करते थे और श्रीपूज्य श्री जिन विजयेन्द्र सूरीउन्ही में से एक महत्वपूर्ण श्रीपूज्य जी थे.

तत्कालीन श्री पूज्य श्री जिन चारित्र सूरीके के देवलोकगमन के पश्चात् जयपुर के विद्वान् यति श्री श्यामलाल जी के आबाल ब्रह्मचारी शिष्य यति श्री विजयलाल जी सुयोग्य जान कर उन्हें बीकानेर की बड़ी गद्दी का श्रीपुज्य बनाने का निश्चय हुआ. श्रीपूज्य बनने के बाद अपनी योग्यता, विद्वत्ता, साधना एवं सरल व परोपकारी स्वभाव से जिन शासन की जबरदस्त सेवा की.

आपका जन्म आज से सौ वर्ष पूर्व हुआ था और यह उनका जन्म शताब्दीवर्ष है. उल्लेखनीय है की आपकी दीक्षा दादा श्री जिन कुशल सूरी की प्रत्यक्ष दर्शन स्थली मालपुरामें ही हुआ था. वे अत्यंत दयालु प्रवृत्ति के होने के कारण भक्तों के कष्ट हरण में भी तत्पर रहते थे और उनकी विशिष्ट साधना चमत्कार का पर्याय बन गई थी। यहाँ तक की उनके आशीर्वाद से उनके छड़ीदार गोपाल ने दादागुरु के लिए जो लिखा वह गुरु इकतीसा के नाम से जगत प्रसिद्द हो गया. आज भी श्री जिन विजयेंद्र सूरी के छड़ीदार गोपाल की रचना गुरु इकतीसाभक्तों के कंठ में बसी है और भक्त गन उसे मनोवांछित पूरक और संकटमोचक मानते हैं.  

बीकानेर के बाद अजीमगंज की गद्दी दूसरे स्थान में मानी जाती थी और वो भी उनकी कर्मभूमि रही. वहां पर भी उन्होंने कई चौमासे किये और उसे भी अपनी तपोभूमि बनाई। अजीमगंजके बड़ी पौषाल में होनेवाले उनके प्रवचन में केवल जैन ही नहीं अपितु बड़ी संख्या में अजैन भी उपस्थित होते थे.

खरतर गच्छ की अपनी परंपरा से बंधे होने एवं इस गुरुतर दायित्व का निर्वहन करते हुए भी वे किसी मत-पंथ के आग्रही नहीं थे. उनका उदार चरित्र तो केवल जिन शासन की सेवा में ही रत था. अजीमगंज के प्रख्यात चित्रकार श्री इंद्र दुगड़ ने श्री जिन विजयेंद्र सूरी का जो रेखाचित्र बनाया है उसके नीचे लिखी दो पंक्तियाँ इस भाव को सुन्दर रूप से दरसाती है.

"समकित व्रत को निर्मल कर लो, मारने से मत घबराओ.
व्यर्थ पंथ, मत, वाद आदि में अपना मन मत भरमाओ".

सं १९६३ में मात्र ४७ वर्ष की अल्पायु में देवलोकगमन से पूर्व ही आपने जिन शासन की सेवा के इतने काम किये की उसका वर्णन करना मुश्किल है. जैन शासन के इस जाज्वल्यमान नक्षत्र को वंदन करते हुए हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

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जैन आगमों की रूपरेखा एवं इतिहास

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जैन धर्म भगवन महावीर के उपदेशों पर आधारित है और उनकी वाणी आगम के रूप में जानी जाती है. यह सभी जानते हैं की तीर्थंकर जो उपदेश देते हैं उन्हें गणधर भगवंत संकलित एवं सुत्रवद्ध करते हैं. इन्हें आगम कहा जाता है और यह द्वादशांगी अर्थात बारह (१२) भागों में विभाजित है. इन्हें ही अंग सूत्र कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की भगवान् महावीर के पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ११ गणधरों में सबसे अंत में मोक्ष गए. उन्होंने अपने प्रमुख शिष्य जम्बू स्वामी को इन बारह अंगों का उपदेश दिया और उन्होंने इसे शिष्य परंपरा से आगे बढ़ाया।  इन १२ अंगों में से १२ वां दृष्टिवाद विलुप्त हो चूका है जिसका एक भाग चौदह (१४) पूर्व के रूप में विख्यात है. इस समय ग्यारह अंग उपलव्ध हैं.

जैन आगमों का अवलोकन करते हुए विदेशी विद्वान् 
यह ग्यारह अंग निम्न प्रकार हैं
१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. भगवती (व्याख्या प्रज्ञप्ति) ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासक दसांग ८. अंतकृत दसांग ९. प्रश्नव्याकरण १०. अनुत्तरोपपातिक ११.  विपाक

गणधर कृत एवं वर्त्तमान में उपलव्ध ११ अंगों के अलावा चौदह एवं दस पूर्वधर आचार्यों द्वारा लिखित सूत्र भी आगम माना जाता है. चौदह एवं दस पूर्वधर आचार्यों द्वारा लिखित या संकलित बारह उपांग, छह छेद, दस प्रकीर्णक, चार मूलसूत्र, अनुयोगद्वार और नंदी सूत्र इस प्रकार चउतीस और मिला कर कुल पैतालीस आगम वर्त्तमान में पाए जाते हैं.

भगवान् महावीर के समय ये सभी सूत्र लिखे नहीं जाते थे और गुरु परंपरा से शिष्य इन्हें श्रुत रूप में प्राप्त करते थे. इसलिए इन आगमों के ज्ञान को श्रुत ज्ञान भी कहा जाता है।  कालक्रम से स्मृति शक्ति कमजोर होने पर इन्हें याद रखना कठिन हो गया तब भगवान् महावीर के निर्वाण के ९८० वर्ष बाद देवर्धिगणी क्षमाश्रमण ने इन्हें संकलित कर लिपिवद्ध करवाया तब से आगमों को लिखने की परंपरा प्रारम्भ हुई.

इन आगमों पर परवर्ती आचार्यों एवं विद्वान् मुनियों ने निर्युक्ति, चूर्णी, भाष्य एवं टीकाएँ लिखी। इन के माध्यम से उन्होंने आगमों के अर्थ को समझाया एवं उस पर विस्तृत विवेचन किया। मूल आगम, निर्युक्ति, चूर्णी, भाष्य एवं टीका (कुल पांच) मिलकर पंचांगी बनती है और इस पंचांगों को जैनागम कहा जाता है. मूर्तिपूजक परंपरा पैतालीस आगमों की पंचांगों को स्वीकार करती है जबकि स्थानकवासी एवं तेरापंथी परंपरा इनमे से ३२ आगमों को हिमान्याता देती है. स्वाभाविक रूप से जिन आगमों में मूर्तिपूजा का उल्लेख है उन्हें यह परंपराएं (मूर्ति एवं मंदिर का निषेध करने के कारण) मान्य नहीं करती।

वर्तमान में उपलव्ध सभी जैन शास्त्रों का आधार इन्ही ४५ आगमों को माना जाता है. भगवान् महावीर के बाद २५०० वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो चूका है और इस अवधि में पूर्वाचार्यों,  विद्वान् संतों, यतियों, भट्टारकों, यहाँ तक की श्रावकों ने भी विपुल मात्रा में जैन आध्यात्मिक एवं धार्मिक साहित्य का सृजन किया है. ये ग्रन्थ जन- जन का मार्गदर्शन करते हैं एवं उनके ज्ञान में अभिवृद्धि करते हैं.

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जैन आगमों की रूपरेखा एवं इतिहास

क्या है महावीर स्वामी महापूजन?

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क्या है महावीर स्वामी महापूजन?

क्या है महावीर स्वामी महापूजन? यह प्रश्न मुझे कई लोग पूछ रहे हैं. अभी कुछ दिन पूर्व ही मैंने इस जैन एंड जैनिज़्म ब्लॉग में लिखा था की कोलकाता के महावीर स्वामी मंदिर के १५० वर्ष प्रारम्भ होने के उपलक्ष्य में ६ फरबरी, २०१७ को श्री महावीर स्वामी महापूजन पढ़ाई जाएगी। यह पूजा विश्व में पहली बार होने जा रही है इसलिए इसके बारे में जानने  की इच्छा होना स्वाभाविक ही है. मैंने उस ब्लॉग पोस्ट में यह भी लिखा था की यह पूजा जैन आगम ग्रन्थ सूयगडांग (सूत्रकृतांग) पर आधारित है.

कोलकाता के महावीर स्वामी मंदिर के १५० वर्षप्रारम्भ होने के उपलक्ष्य में ६ फरबरी, २०१७ को श्री महावीर स्वामी महापूजन पढ़ाई जाएगी। यह पूजा विश्व में पहली बार होने जा रही है. यह पूजा आगम ग्रन्थ सूयगडांग (सूत्रकृतांग) सूत्र पर आधारित है. अवश्य पधारें. अवसर न चुकें।
महापूजन का एक दृश्य १ 

महापूजन का एक दृश्य 
यह पूजा अत्यंत विशिष्ट कोटि की है अतः श्रद्धालु गणों से निवेदन है की पूरी पूजा में बैठ कर इस का लाभ लें. पूजा में श्लोकों के साथ उसका विवेचन भी किया जाएगा जिससे आगंतुकों को विशेष लाभ होगा। पूजा की विस्तृत जानकारी तो पूजा में आने पर ही होगी लेकिन इसका संक्षिप्त स्वरुप यहाँ बताया जा रहा है.

सूयगडांग (सूत्रकृतांग) सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के छठे अध्याय में प्रभु महावीर की स्तुति की गई है जिसमे लोगों के पूछे जाने पर गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ने भगवान् महावीर के अतिशय युक्त जीवन के सम्वन्ध में बताया है. इन्ही सूत्रों के आधार पर सर्वप्रथम भगवान् महावीर की अष्टप्रकारी पूजा होगी। इसके बाद दशाश्रुतस्कन्ध नाम के आगम के आधार पर भगवान् के कल्याणकों की पूजा होगी. तत्पश्चात भगवान् के अष्ट प्रातिहार्य व अतिशयों की पूजा होगी जिसका आधार सूयगडांग (सूत्रकृतांग) सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के बारहवें अध्याय "समवशरण"व समवायांग सूत्र (चौथा अंग) होगा।

इसके बाद स्थविरावली (कल्पसूत्र) एवं गणधरवाद (विशेषावश्यक भाष्य) के आधार से ग्यारह गणधरों की व साथ में प्रभु महावीर के चौदह हज़ार साधु व छतीस हज़ार साध्वी भगवंतों की पूजा होगी। तत्पश्चात उपासक दशांग सूत्र में वर्णित दस प्रतिमाधारी श्रावकों की व भगवान् के कुल एक लाख उनसठ हज़ार श्रावकों की व तीन लाख अठारह हज़ार श्राविकाओं की पूजा होगी।

इन सबके अतिरिक्त भगवान् महावीर के माता पिता, शासन देव-देवी, अष्ट मंगल, नवनिधि, नवग्रह, दस दिकपाल आदि का आह्वान पूजन आदि भी विधि विधान से संपन्न होगा। महावीर स्वामी महापूजन के साथ ही शिखर पर ध्वजारोहण भी विधि पूर्वक कराया जायेगा।

जैन आगमों की रूपरेखा एवं इतिहास


श्रीमहावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाता का सार्द्ध शताब्दी महोत्सव


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150 years celebration of Mahavira Swami temple, Kolkata

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150 years celebration of Mahavira Swami temple, Kolkata

Mahavira Swami Shwetambar Jain temple is one of the oldest Jain temples in Kolkata, built by Sri Sukhlal Johri in the year 1868. There will be a year-long celebration of 150th year of the temple commencing from Monday, February 6, 2017.


There will be "Sri Mahavira Swami Mahapujan" on the establishment day, i.e Magh Shukla Dasami that falls this year on February 6. Dhwajarohan (Flag hoisting) will take place during the Mahapoojan followed by a Sadharmi Vatsalya (Lunch).

Samavasaran at Mahavira Swami temple, Kolkata

Wall painting at Mahavira Swami temple, Kolkata
The program will be organized under the auspices of Sadhvi Sri Sanyampurna Sri Ji, Chandanbala Sri Ji et al. Jyoti Kothari, Jaipur has planned and organized the Mahapoojan that is to occur first time ever. This is a distinguished Mahapoojan derived from the old Jain canons such as Sutrakritang, Samavayang, Upasagdasang and Dashashrutskandh. Sri Yashwant Golechha, Jaipur will perform all rituals.

Srimati Putul Kothari and Sri Pradip-Kuldip Mahamwal family will sponsor the whole program. This is worth mention that this is the first program of the year-long celebrations. You will be informed of about the next program in due course.

All of you are cordially invited to the celebration with your family and friends.

 श्री महावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाता का सार्द्ध शताब्दी महोत्सव


क्या है महावीर स्वामी महापूजन?


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श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता का सार्ध शताब्दी महोत्सव

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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के मानिकतल्ला में स्थित जैन मंदिरों में श्री महावीर स्वामी मंदिर का अपना एक विशिष्ट स्थान है. इस मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है और यह हज़ारों पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती है. जैन धर्मावलम्बियों के लिए तो यह आस्था का केंद्र है ही.

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता का भव्य द्वार 
 इस भव्य मंदिर के निर्माण का १५० वर्ष पूर्ण होने जा रहा है और इस उपलक्ष्य में ३ दिवसीय कार्यक्रम (सार्ध शताब्दी महोत्सव) का भव्य आयोजन २६ से २८ जनवरी २०१८ को किया जा रहा है. एक वर्ष पहले जिस सार्ध शताब्दी वर्ष का शुभारम्भ किया गया था अब उसकी पूर्णाहुति होने जा रही है. इस उपलक्ष्य में २६ जनवरी सायंकाल वीर मंडल, कोलकाता एवं श्रीमद राजचन्द्र सत्संग मंडल, हम्पी द्वारा भक्तिरस की सरिता बहाई जायेगी। २७ तारीख प्रातः ९ बजे से सत्रह भेदी पूजा पढाई जायेगी एवं विजय मुहूर्त में ध्वजारोहण होगा. श्री मुल्तान चन्द जी सुराणा सम्पूर्ण विधि विधान संपन्न करवाएंगे. साम साढ़े पांच बजे से भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा। इस सम्पूर्ण कार्यक्रम को निश्रा प्रदान करेंगी स्वर्गीया प्रवर्तिनी महोदया परम पूज्या श्री विचक्षण श्री जी महाराज की प्रशिष्या एवं स्वर्गीया प्रवर्तिनी महोदया परम पूज्या श्री चन्द्रप्रभा श्री जी महाराज की सुशिष्या परम पूज्या श्री रत्नानिधि श्री जी एवं पुण्यनिधि श्री जी महाराज.

मंदिर के अंदर समवशरण का नयनाभिराम चित्र 
 कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल सरकार के माननीय मंत्री श्री साधन पण्डे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे. केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के माननीय सदस्य श्री सुनील जी सिंघी, अहमदाबाद एवं जैन आगमों के मर्मज्ञ विद्वान् (व अंग्रेजी अनुवादक) श्री सुरेंद्र जी बोथरा, जयपुर विशिष्ट अतिथि होंगे. अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ प्रतिनिधि महासभा के अध्यक्ष श्री मोतीलाल जी झाबक, रायपुर कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे.

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता के अंदर कांच एवं टाइल्स का काम 
 २८ जनवरी प्रातःकाल ९ बजे से स्नात्र पूजा पढाई जाएगी एवं उसके बाद शांति स्नात्र का कार्यक्रम रहेगा. इस सम्पूर्ण कार्यक्रम में सभी साधर्मी वन्धुओं की उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है.

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता के बाग़ बगीचे 
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महावीर स्वामी मंदिर के कार्यक्रम में पधारनेवाले अतिथियों का परिचय

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महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता के कार्यक्रम में पधारनेवाले अतिथियों का परिचय 

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता का सार्ध शताब्दी (१५० वर्ष) महोत्सव दिनांक २६ जनवरी से २८ जनवरी, २०१८ तक धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस कार्यक्रम में देश मोदी के नजदीकी हैं. के अनेक गणमान्य व्यक्ति अतिथि के रूप में पधार रहे हैं. महोत्सव में पधारनेवाले अतिथियों का संक्षिप्त परिचय निम्नरूप है.

श्री साधन पाण्डे 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री साधन पाण्डे पश्चिम बंगाल सरकार में उपभोक्ता संरक्षण एवं स्वरोजगार मंत्रालय में कैबिनेट स्तर के मंत्री हैं.  वे लोकप्रिय जनता हैं एवं कोलकाता से कई बार विधायक रह चुके हैं.



श्री सुनील जी सिंघी 

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री सुनील जी सिंघी, अहमदाबाद कर रहे हैं. वे जैन समाज के गौरव हैं. गुजरात भाजपा में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके श्री सिंघी के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से घनिष्ठ सम्वन्ध है. राजनीति के अल्वा आप सामाजिक/ धार्मिक क्षेत्र में काफी सक्रीय रहे हैं. मूर्तिपूजक युवक महासंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष के रूप में आपने सराहनीय सेवाएं दी है.  केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के माननीय सदस्य (केंद्रीय राज्यमंत्री का दर्ज़ा प्राप्त) श्री सिंघी प्रखर वक्ता के रूप में विख्यात हैं. 

श्री मोतीलाल जी झाबक 
विशिष्ट अतिथि श्री मोतीलाल जी झाबकवयोवृद्ध समाजसेवी एवं दानवीर हैं. अनेकों अस्पताल, एवं शिक्षण संस्थाएं उनके योगदान की ऋणी है. आपने अष्टापद तीर्थ (मालवा) में एक विशाल दादाबाड़ी का भी निर्माण करवाया है एवं वर्त्तमान में उस ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं. पालीताना में २ वर्ष पूर्व हुए खरतर गच्छ महासम्मेलन के आयोजन में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. रायपुर निवासी सी झाबक जी अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ प्रतिनिधि महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. प्रतिनिधि महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री संतोष जी गोलेच्छा भी आपके साथ पधार कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएंगे.  

श्री विमलचन्द जी सुराणा 
विशिष्ट अतिथि श्री विमलचन्द जी सुराणावो नाम है जिसे भारतभर का जैन समाज जनता है. विलक्षण व्यापारिक प्रतिभा के धनी श्री सुराणा जी दानवीर एवं समाजसेवी होने के साथ ही विपश्यना ध्यान के वरिष्ठ आचार्य भी हैं. वे महावीर कैंसर हॉस्पिटल के मैनेजिंग ट्रस्टी, एस जे विद्यालय / महाविद्यालय समूह के संरक्षक हैं. खरतर गच्छ संघ, जयपुर एवं खरतर गच्छ महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रह चुके हैं. अन्य अनेक धार्मिक सामाजिक संस्थाओं के सञ्चालन में भी आपकी भूमिका रहती है. वर्त्तमान में वे राजस्थान प्रान्त से शेठ आनन्द जीकल्याणजी पेढ़ी के मानद प्रतिनिधि हैं. 

श्री सुरेंद्र जी बोथरा 
विशिष्ट अतिथि श्री सुरेंद्र जी बोथराजैन दर्शन के वरिष्ठतम विद्वानों में से हैं. आचारांग, भगवती, विपाक, उत्तराध्ययन, अनुयोगद्वार, नंदी जैसे अनेक आगमों का अंग्रेजी अनुवाद कर चुके हैं. इसके अतिरिक्त अनेक पुस्तकों का लेखन, सम्पादन, अनुवाद भी किया है. प्रचार प्रसार से दूर रहकर काम में डूबे रहनेवाले व्यक्ति श्री बोथरा जी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वरिष्ठ विद्वान हैं. 

उपरोक्त अति विशिष्ट व्यक्तियों के अतिरिक्त चेन्नई के प्रसिद्द एस देवराज जैन परिवार के श्री गौतम जैन, प्रसिद्द जैन इतिहासकार एवं लेखक डा. शिवप्रसाद, वाराणसी, जयपुर के प्रसिद्द गायक श्री अनिल श्रीमाल, श्वेताम्बर जैन साप्ताहिक के संपादक श्री विजेंद्र सिंह लोढ़ा, आगरा, आदि अनेक गणमान्य व्यक्ति बाहर से पधार रहे हैं. इसके अतिरिक्त श्रीमद राजचन्द्र सत्संग मंडल, हम्पी, कर्णाटक के १२५ लोग भी महोत्सव में पधार कर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे. कोलकाता के भी अनेक विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी लोग कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएंगे. 


श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता का सार्ध शताब्दी महोत्सव


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कोलकाता के प्राचीन जैन मंदिर

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कोलकाता के प्राचीन जैन मंदिर 

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता १९ वीं एवं वीसवीं सदी में जैन धर्मावलम्वियों का प्रमुख केंद्र रहा है. इस समय में यहाँ अनेकों भव्य कलात्मक जैन मंदिरों का निर्माण हुआ. मुग़ल काल में मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी थी एवं यह जैन समाज का प्रमुख केंद्र था परन्तु अंग्रेजों ने कोलकाता को अपना केंद्र बनाया और ब्रिटिश काल में जैनों की वस्ति भी मुर्शिदाबाद से धीरे धीरे कोलकाता पहुंचने लगी.

१९वीं सदी में लखनऊ से आये हुए श्रीमालोन का कोलकाता में वर्चस्व रहा और उनलोगों ने ४ जिनमंदिरों का निर्माण करवाया. आज् से दो सौ साल पहले सर्वप्रथम बड़ाबाजार (कलाकार स्ट्रीट) में टांक परिवार ने श्री शांतिनाथ स्वामी के मंदिर का निर्माण करवाया. यह मंदिर तुलपट्टी पंचायती मंदिर के नाम से विख्यात है. इसके साथ ही मानिकतल्ला में एक दादाबाड़ी का भी निर्माण करवाया गया था. यह पंचायती है और इसके निर्माता एवं निर्माण का समय ज्ञात नहीं है.

सन १८६७ में प्रसिद्द जौहरी राय बद्रीदास बहादुर मुकीम ने मानिकतल्ला में श्री शीतलनाथ स्वामी के  विश्वप्रसिद्ध मंदिर का निर्माण कराया. यह पारसनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह पूरा मंदिर बेल्जियम कांच से बना हुआ है. इसके एक वर्ष बाद शीतलनाथ मंदिर के सामने एवं दादाबाड़ी के दाहिनी ओर सन १८६८ में सुखलाल जौहरी ने श्री महावीर स्वामी के विशाल मंदिर का निर्माण कराया. यह कोलकाता के सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है इसलिए लगभग सभी बड़ी पुजाएँ यहीं पर होती है. इस मंदिर के रंगमंडप में ४०० से ५०० लोग बैठ सकते हैं.  इसी वर्ष २६ से २८ जनवरी तक इस मंदिर का सार्ध शताब्दी महोत्सव (१५० वर्ष)  मनाया जा रहा है.

महावीर स्वामी मंदिर के निर्माण के कुछ वर्ष बाद खारड़ परिवार ने श्री चंदाप्रभु स्वामी के मंदिर का निर्माण करवाया।  यह मंदिर भी भव्य एवं कलात्मक है.  मानिकतल्ला स्थित तीनों मंदिरों की विशेषता ये है की तीनो ही मंदिर काफी ऊंचाई पर बने हुए हैं और कई सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में पंहुचा जा सकता है. तीनो हीहै. मंदिरों में परमात्मा की मनोहारी मूर्तियां है.

मुर्शिदाबाद से आये हुए शहरवाली समाज ने भी कोलकाता में मंदिरों का निर्माण करवाया. इंडियन मिरर स्ट्रीट, धर्मतल्ला में नाहर परिवार द्वारा निर्मित कुमार सिंह हॉल के मंदिर का १०० वर्ष अभी अभी पूरा हुआ है. दुगड़ परिवार का घर देहरासर धर्मतल्ला के ही क्रीक रो में अवस्थित है.

इन प्राचीन मंदिरों के अलावा कैनिंग स्ट्रीट एवं हेसम स्ट्रीट का जैन मंदिर भी लगभग ५० वर्ष पुराना है. उसके बाद कोलकाता में पिछले २०-२५ वर्षों में भी अनेकों जिन मन्दिर का निर्माण हुआ है.

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महावीर स्वामी मंदिर सार्ध शताब्दी पर मेडिकल कैम्प

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 महावीर स्वामी मंदिर सार्ध शताब्दी पर मेडिकल कैम्प 

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता के सार्ध शताब्दी महोत्सव (१५० वर्ष पूर्ति) के अवसर पर एक मेडिकल कैम्पभी आयोजित किया जायेगा. कोलकाता का खरतर गच्छ संघ इसे महोत्सव के अंतिम दिन २८ जनवरी, रविवार को आयोजित करने जा रहा है. संघ के अध्यक्ष श्री विनोदचंद जी बोथरा नियमित रूप से वर्षों से महावीर स्वामी मंदिर में पूजा एवं स्नात्र करने पधारते रहते हैं.

निःशुल्क मेडिकल कैम्प 
"सेवा"भगवान् महावीर के उपदेश का एक अभिन्न अंग है. समवशरण में देशना देते हुए (जैन आगम भगवती सूत्र में एक प्रश्न के उत्तर में) भगवान् ने कहा है की जो व्यक्ति दीं दुखियों की सेवा करता है वो मेरा सच्चा सेवक है और मेरी पूजा करने से भी अधिक फल प्राप्त करता है. सेवा वैयावच्च का ही एक रूप है और वैयावच्च  जैन धर्म के "वीस स्थानक"के वीस में से एक प्रमुख पद है.

Samavasharan painting at Mahavira Swami temple, Kolkata
महावीर स्वामी मंदिर कोलकाता में समवशरण का एक चित्र 

खरतर गच्छ संघ, कोलकाता ने मंदिर के सार्ध शताब्दी महोत्सव पर मेडिकल कैम्प आयोजित करने का निर्णय ले कर प्रभु की आज्ञा को ही क्रियान्वित किया है और इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं.

इस मेडिकल कैम्प में कई विशेषज्ञ डाक्टरों की सेवाएं ली जाएगी और वे निःशुल्क मरीजों की जांच करेंगे. इससे लोगों को बहुत फायदा होगा, जैन समाज के कई जाने माने डाक्टर इस कैम्प में अपनी सेवाएं प्रदान करेंगे.

श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता के सार्ध शताब्दी महोत्सव

महावीर स्वामी मंदिर के कार्यक्रम में पधारनेवाले अतिथियों का परिचय



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बंगाल के जैन मंदिर: एक शोध परियोजना

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Jain Temples in Bengal- A Research Project 

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बंगाल के जैन मंदिर: एक शोध परियोजना 

तीर्थंकर महावीर स्वामी 

यह एक सर्वविदित तथ्य है की भगवान महावीर ने बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में परिभ्रमण किया था. वर्धमान और वीरभूम इन दोनों जिलों का नाम इस बात के प्रमाण के रूप में आज भी विद्यमान है  भगवान महावीर के १३०० वर्ष बाद तक भी जैन धर्म बंगाल के प्रमुख धर्मों में से एक रहा लेकिन ईसा की ७वीं शताब्दी के बाद से बंगाल में इसका क्षरण प्रारम्भ हुआ तथा यहाँ पर यह लुप्तप्राय हो गया। 

वीरभूम 

वर्धमान



 बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश से लुप्त होता हुआ जैन धर्म दक्षिण भारत में पनपा और ईसा की ९वीं शताब्दी से यह गुजरात और राजस्थान में फलने-फूलने लगा। 

भांडाशाह मंदिर बीकानेर , राजस्थान 


जलमंदिर, बाबू देरासर, पालीताना 
 १७वीं-१८वीं सदी से राजस्थान के जैन वणिकगण फिर से बंगाल आने लगे और यहाँ पर जैन धर्म का उदयकाल पुनः प्रारंभ हुआ। नवाब मुर्शीदकुली खां के नजदीकी जगत सेठ के कारण जैन समाज का महत्व बढ़ने लगा और यहाँ से यह पुनरोदय सशक्त होने लगा।  

 तत्कालीन बंगाल सूबे की राजधानी मुर्शीदाबाद से कुछ ही मील की दुरी पर महिमापुर में जगत  सेठ ने पार्श्वनाथ भगवान् का कसौटी के पत्थर का भव्य जिनालय बनवाया।  

कसौटी का खम्भा, महिमापुर 


काठगोला का भव्य विशाल द्वार 
इसके बाद काशिमबाज़ार, दस्तुरहाट,  अजीमगंज, जियागंज, जंगीपुर आदि स्थानों में गोलेच्छा, दुगड़, मुणोत, नाहर, कोठारी, श्रीमाल, छजलानी आदि परिवारों ने अनेकों जिनमंदिर एवं दादाबाड़ियों का निर्माण करवाया।  

पंचतीर्थी- कीरतबाग, जियागंज 
श्री सम्भवनाथ मंदिर, जियागंज 
रत्नों की प्रतिमाएं, छोटी शांतिनाथ, अजीमगंज 
चौवीसी, रामबाग, अजीमगंज 

श्री पार्श्वनाथ, जंगीपुर 
स्फटिक चरण , दादाबाड़ी, अजीमगंज 
१९वीं सदी के पूर्वार्ध से ही अंग्रेजों की राजधानी होने के कारण कोलकाता का महत्व बढ़ने लगा और उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली से जैन समाज के लोग यहाँ आ कर बसने लगे। इसके फल स्वरूप यहाँ जौहरी-साथ के धनाढ्य परिवारों ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया।  इनमे टांक परिवार द्वारा निर्मित श्री शांतिनाथ स्वामी का पंचायती मंदिर, राय बद्रीदास बहादुर मुकीम द्वारा निर्मित विश्वप्रसिद्ध श्री शीतलनाथ स्वामी का मंदिर,

श्री शीतलनाथ स्वामी, कोलकाता 


राय बद्रीदास बहादुर मुकीम

श्री गणेशीलाल खारड़ द्वारा निर्मित श्री चंदाप्रभु स्वामी का मंदिर 
एवं श्री सुखलाल जौहरी कृत श्री महावीर स्वामी का मंदिर   विख्यात हैं।  


श्री महावीर स्वामी मन्दिर, कोलकाता का भव्य शिखर 
इन मंदिरों के निर्माण से पहले ही यहाँ एक भव्य दादाबाड़ी का निर्माण हो चूका था. 

कालान्तर में मुर्शिदाबाद से शहरवाली समाज के लोग कोलकाता आ कर बसने लगे और नाहर एवं दुगड़ परिवार ने भी यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया।  इसके बाद गुजराती समाज व राजस्थान से आये हुए नए बसे जैनों ने (मारवाड़ी साथ) ने भी यहाँ कई मंदिरों का निर्माण करवाया।

जिनेश्वर सूरी भवन, कोलकाता 
 साथ ही बंगाल के कई अन्य स्थानों जैसे बोलपुर, दुर्गापुर, सैंथिया आदि में भी कई जिनमंदिर बने। इन मंदिरों के निर्माण एवं प्रतिष्ठा में साधु-साध्वियों के अतिरिक्त श्री पूज्यों एवं यतियों का भी विशेष योगदान रहा है.  


श्रीपुज्य जी श्री जिन विजयेन्द्र सूरी 


स्थापत्य एवं कला के अद्भुत नमूने ये सभी मंदिर जैन समाज की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर हैं परन्तु लम्बे समय से इन पर कोई शोध नहीं हुई  है।  


श्री वासुपूज्य स्वामी, अजीमगंज 

श्री नेमिनाथ मंदिर, अजीमगंज 

श्री नेमिनाथ स्वामी, अजीमगंज 
कांच का काम, श्री शीतलनाथ मंदिर, कोलकाता 

श्री नेमिनाथ स्वामी, अजीमगंज

श्री शीतलनाथ स्वामी, कोलकाता

 हमारी इस शोध परियोजना का उद्देश्य विगत तीन सौ वर्षों में बने इन मंदिरों के सम्वन्ध में ऐतिहासिक जानकारी जुटा कर उसे आम लोगों तक पहुंचाना है। जैन साहित्य में सामाजिक इतिहास का क्षेत्र लगभग परित्यक्त ही रहा है, इस दिशा  में भी शोध कार्य को आवश्यक महत्व मिले इस उद्देश्य से इन मदिरों के निर्माण और देख-रेख के कार्यों से जुड़े परिवारों से सम्बंधित इतिहास पर शोध कार्य को भी इस योजना में शामिल किया गया है। 




प्रमुख जैन इतिहासज्ञ वाराणसी के डा. श्री शिवप्रसाद जी ने इस गुरुतर कार्यभार को सँभालने की स्वीकृति दे कर हमें अनुगृहीत किया है, साथ ही देश विदेश के अनेक जानेमाने विद्वान भी इससे जुड़ चुके हैं। कोलकाता की प्रसिद्ध  एशियाटिक सोसाइटी एवं इंडियन म्यूजियम और अहमदाबाद की एल डी इंस्टिट्यूट ने भी परियोजना से जुड़कर हमारा हौसला बढ़ाया है। इसके लिए हम इन संस्थाओं के आभारी हैं। . 

कोलकाता का श्री महावीर स्वामी मंदिर भी इसी विरासत का एक अंग है जिसने आज अपने डेढ़ सौ वर्ष पूरे किए हैं। ऐसी शोध परियोजना प्रारम्भ करने का यह एक उत्तम अवसर है और हम आज इसे आपके समक्ष ला रहे हैं. हमें विश्वास है की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में आप सबका  उदार सहयोग हमें निरंतर प्राप्त होगा।  





परियोजना निदेशक
 डा. शिवप्रसाद, वाराणसी
स्थापत्य एवं कला निदेशक
 डा. श्रीमती चंद्रमणि सिंह, पूर्व निदेशक, सिटी पैलेस म्यूजियम, जयपुर

सम्पादन सलाहकार: 
श्री सुरेंद्र बोथरा, जैन आगम मर्मज्ञ
प्रोफ़ेसर जॉन कोर्ट, डेनिसन विश्वविद्यालय, अमरीका 
प्रोफ़ेसर पीटर फ्लुगल, लन्दन विश्वविद्यालय, यू के 

 संयोजक
ज्योति कुमार कोठारी, जयपुर
२७ जनवरी २०१८

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श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाता का सार्ध शताब्दी महोत्सव सम्पन्न

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श्री महावीर स्वामी मंदिर, कोलकाताका त्रिदिवसीय सार्ध शताब्दी महोत्सवअत्यंत उल्लासपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ। स्थानीय जनों के अतिरिक्त जयपुर, चेन्नई, अहमदाबाद, दिल्ली, होसपेट, बेंगलुरु, मुम्बई, रायपुर, गोवा, वाराणसी, कच्छ, पुणे, चंद्रपुर, पटना,भागलपुर, अजीमगंज, जियागंज आदि स्थानों के गणमान्य व्यक्तियों ने पधार कर प्रभु भक्ति का लाभ लिया।

श्री महावीर स्वामी मंदिर कोलकाता 
26 जनवरी सायंकाल वीर मंडल, कोलकाता ने भक्ति संगीत पेश किया। वीर मंडल कोलकाता के प्रसिद्द मंडलों में से है जिनके संगीत की धूम पुरे भारत में है. साथ ही चेन्नई से पधारे श्री गौतम जैन व जयपुर से पधारे श्री प्रितेश शाह एवं ज्योति कोठारी ने भी स्थानीय कलाकारों श्री वीरेंद्र कोठारी, श्री किशोर सेठिया के साथ अपनी प्रस्तुति दी।

27 जनवरी प्रतिष्ठा दिवस के उपलक्ष्य में प्रातः काल सत्रह भेदी पूजा पढ़ाई गई, 9 वीं ध्वजपूजा के अवसर पर विधिवत शिखर पर ध्वज चढ़ाया गया। विधिकारक श्री मुल्तान चन्द जी सुराणा ने सम्पूर्ण विधि विधान सम्पन्न करवाया। परम पूज्या साध्वी श्री रत्ननिधि श्री जी, पुण्यनिधि श्री जी के सान्निध्य में होने वाले इस कार्यक्रम मे सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। श्री किशोर सेठिया, अंकित चोरडिया एवं मोहित बोथरा ने शास्त्रीय रागों पर आधारित पूजा पढ़ाई। श्रीमद राजचंद्र सत्संग मंडल, हम्पी, कर्नाटक ने भी भक्तिरस की सरिता बहाई। मंदिर की मुख्य ट्रस्टी 95 वर्षीया श्रीमती पुतुल कोठारी ने अत्यंत रुग्णावस्था के बाबजूद ध्वजारोहण में पधार कर अपने दृढ़ मनोवल का परिचय दिया।

कार्यक्रम संयोजक ज्योति कोठारी ने आगमों के उद्धरणों से पूजा, ध्वजारोहण एवं प्रभुभक्ति का महत्व समझाया। उन्होंने यह भी बताया की चतुर्थ दादागुरु देव श्री जिन चंद्रसूरी के विद्यागुरु, तानसेन के समकालीन उपाध्याय साधुकीर्ति उद्भट विद्वान व शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता थे. सत्रह भेदी पूजा साधुकीर्ति की विशिष्ट रचना है जिसकी आजसे ४५० वर्ष पूर्व रचना की गई. उनकी प्रेरणा से भक्ति का ऐसा समां बांध की उपस्थित अपार जनमेदिनी झूम उठी और घंटों तक लोग प्रभु भक्ति में झूमते रहे। एक भी पैर ऐसा न था जो थिरका न हो। समारोह के विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय खरतरगच्छ प्रतिनिधि महासभा के अध्यक्ष 90 वर्षीय श्री मोतीलाल जी झाबक और मंत्री श्री संतोष जी गोलेच्छा भी नृत्य किये बिना न रह सके। पूजा के दौरान वासक्षेप, गुलाबजल, व पुष्प ही नही अपितु मोती की भी वर्षा की गई।

श्री मनीष जी नाहरमोहित जी सुराणा एवं अमित जी श्रीमाल ने परमात्मा की भव्य अंगरचना की. कार्यक्रम के दौरान तीनों दिन किये गए फूलों की आंगी की सभी ने भूरी भूरी प्रशंसा की. पूजन पश्चात् साधर्मी वात्सल्य का आयोजन किया गया.

सायंकाल सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया।  सर्वप्रथम श्रीमती रुमु लोढ़ा, चंद्रपुर ने मंगलाचरण कर कार्यक्रम की शुरुआत की. विशिष्ट अतिथियों ने भगवान् महावीर के प्राचीन चित्र के सामने दीप प्रज्वलन किया. केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य (केंद्रीय राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त) श्री सुनील जी सिंघी की अध्यक्षता में सभा प्रारम्भ हुई। श्री झाबक जी के अतिरिक्त जयपुर से पधारे हुए आगम मर्मज्ञ श्री सुरेन्द्र जी बोथरा, एसियाटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रोफेसर अरुण बैनर्जी, इंडियन म्यूज़ियम, कोलकाता के निदेशक श्री राजेश पुरोहित विशिष्ट अतिथियों की पंक्ति को शोभायमान कर रहे थे।

 मंदिर के निर्माता परिवार के सदस्य डॉक्टर कुमार बहादुर सिंह, वयोवृद्ध श्री विमान जी श्रीमाल, बद्रीदास बहादुर मुकीम परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्री चंचल कुमार सिंह मुक़ीम, कोलकाता पंचायती मंदिर के मंत्री श्री सुशील राय सुराणा, एवं खरतर गच्छ संघ, कोलकाता के अध्यक्ष श्री विनोद चन्द जी बोथरा  ने माल्यार्पण कर अतिथियों का स्वागत किया। सभी अतिथियों को सार्ध शताब्दी महोत्सव पर निकाले गए चांदी का सिक्का भी भेंट किया गया.

 न्यूयॉर्कसे पधारे श्री इन्द्र रायचौधरी के सितार और वहीं से पधारे उच्छल बैनर्जी के तबले की जुगलबंदी में  राग खंबाज में प्रस्तुत दी। उनके साथ जर्मनी से पधारे ने गिटार में संगत किया. प्रस्तुति इतनी मनमोहक व सटीक थी कि उपस्थित श्रोतागण वाह वाह कर रहे थे और वन्स मोर वन्स मोर कर पुनः पुनः प्रस्तुति देने के लिए मजबूर कर रहे थे। श्री जिन दत्त सूरी महिला मंडल, कोलकाता ने भी एक भजन प्रस्तुत किया.

 इस अवसर पर आगम मर्मज्ञ विद्वतवर्य श्री सुरेंद्र जी बोथराने 'मौन की प्राचीर से"नाम की भगवान महावीर पर स्वरचित कविता का पाठ किया एवं उपस्थित श्रोताओं को आगम के कुछ गुढ़ रहस्य समझाये। श्री बोथरा जी अब तक अनेक आगमों का अंग्रेजी अनुवाद कर चुके हैं।

कुशल संस्कार कुंजके लगभग 40 बालक बालिकाओं ने मिलकर भगवान महावीर के जीवन की रूपरेखा प्रस्तुत की। नन्हे नन्हे बालकों की सुंदर एवं समयोपयोगी प्रस्तुति की सराहना किये बिना कोई नही रह सका।

इसके साथ ही इस दिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम  "बंगाल के जैन मंदिर: एक शोध परियोजना"का शुभारंभ भी किया गया। इंडियन म्यूजियम के निदेशक श्रीराजेश पुरोहितने परियोजना का शुभारम्भ करते हुए इस परियोजना में हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया।

 इस परियोजना के निदेशक जैन इतिहासज्ञ श्री डॉक्टर शिवप्रसादजी ने महावीर स्वामी मंदिर एवं इसके निर्माता श्री सुखलाल जी जौहरी से संवंधित इतिहास की जानकारी दी। श्री दीपंकर वैरागी ने बंगाली भाषा मे भगवान महावीर पर कविता पाठ किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सुनील जी सिंघीने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय के दर्जे से मिलनेवाले लाभ बताते हुए कहा कि समाजके धरोहरों के संरक्षण में आयोग महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर रहा है। उन्होंने उपस्थित समुदाय से आग्रह किया कि सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ उठाएं। उन्होंने स्वयं को जिनशासन का सेवक बताते हुए इस सम्वन्ध में सभी प्रकार की सहायता करने का वचन दिया।  कार्यक्रम का संचालन गौतम दी जैन, चेन्नई ने किया एवं ज्योति कोठारी ने धन्यवाद अर्पित किया.

२८ तारिख प्रातःकाल स्नात्र पूजा, शांति स्नात्र एवं दोपहर को दादागुरु देव की पूजा पढाई गई. पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री श्री साधन पाण्डे की धर्मपत्नी श्रीमती शुप्ति पाण्डेविशेष अतिथि के रूप में पधारीं. वे पश्चिम बंगाल सरकार में एजुकेसन कमिटी की सदस्य भी हैं. उन्होंने वर्त्तमान समय की अशान्ति एवं भोगवाद के वातावरण से निकलने के लिए जैन धर्म को एक श्रेष्ठ मार्ग बताया. उन्होंने व्यक्तिगत बातचीत में जैन-जैनेतर सभी के लिए जैन धर्म की कक्षाएं प्रारम्भ करने की प्रेरणा दी और इस सन्दर्भ में सभी प्रकार का सहयोग देने का वादा किया.

इस प्रकार यह भव्य समारोह सानंद संपन्न हुआ.

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जैन साधु साध्वी, जैन समाज एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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सार संक्षेप:  मात्र कुछ हज़ार समर्पित प्रचारकों के सहारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) देश के सांस्कृतिक और राजनैतिक पटल को बदल सकता है तो फिर १५ हजार त्यागी, तपस्वी, विद्वान, पैदल विहारी जैन साधु साध्वी क्या देश से मांस निर्यात भी नहीं रोक सकते?

जैन साधु साध्वी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

 महावीर के पूर्णकालिक जीवनदानी स्वयंसेवक, विश्व वन्धुत्व की भावना से काम करने वाले, आत्मसाधना और निःस्वार्थ सेवा के भाव से निरंतर चलनेवाले जैन साधु-साध्वी भगवंत सम्पूर्ण समाज को दिशा देने में सक्षम हैं. आज के इस विषम काल में भी १४-१५ हज़ार जैन श्रमण-श्रमणी वृन्द भारत में विचरण कर रहे हैं. इस बात में कोई संशय नहीं है की संयमी तपस्वियों की इतनी बड़ी संख्या बहुत बड़ी क्रांति लाने में सक्षम है.

इस लेख का ये एक पहलु है दूसरी ओर हमने देश के सांस्कृतिक और राजनैतिक पटल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उभरते हुए देखा है. आज देश के प्रधान मंत्री से लेकर अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी इस संस्था की देन हैं. अनेकों मंत्री, सांसद, विधायक अदि भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हैं. राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में उनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. ये सबकुछ संभव हो सका है कुछ हज़ार प्रचारकों और बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों के कारण जो अपनी विचारधारा में टीके रहकर लगातार अपना काम करते रहते हैं. वे संघर्ष करते हैं, साथ जुटाते हैं, और जरुरत पड़ने पर अकेले ही चल देते हैं.

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में रविशंकर जी के साथ जैन मुनि मैत्रिप्रभ सागर  
मांस निर्यात: अहिंसा की धरती भारत पर कलंक

जैन साधु साध्वी गण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों से भी अधिक कठोर और त्यागमय जीवन जीते हैं. निरंतर पैदल चलने के कारन उनका जनसम्पर्क भी संघ के प्रचारकों से ज्यादा होता है. फिर क्या कारण है की इतनी बड़ी संख्या में त्यागी तपस्वी साधक प्रचारकों के होने के बाबजूद हम भारत से मांस निर्यात तक नहीं रोक पाए? जबकि अहिंसा हमारा प्रथम धर्म है. आज भी देश में हज़ारों की संख्या में यांत्रिक कत्लखाने हैं और खरबों रुपये का मांस निर्यात होता है. सबसे शर्मनाक बात तो ये है की महावीर और बुद्ध की यह धरती, हमारा महान भारत देश, दुनिया में मांस का सबसे बड़ा निर्यातक बन कर उभरा है. क्या हम इस कलंक को धो सकेंगे?

यांत्रिक कत्लखाने का लोमहर्षक दृश्य 
जैन साधु साध्वियों का बिहार एवं जैन व जैनेतर समाज पर उनका प्रभाव 

जैन साधु साध्वी साल में ८ महीने लगातार परिभ्रमण करते रहते हैं और इस दौरान बड़े नगरों से लेकर छोटे छोटे गाँव ढाणियों तक के लोगों से उनका संपर्क होता है. समाज के अमीर गरीब, बच्चे बूढ़े, महिला पुरुष सभी वर्गों से उनकी मुलाकात और बातचीत होती है. इस प्रकार उन्हें देश और समाज से जुड़े सभी पहलुओं की जमीन से जुडी हक़ीक़तों का ज्ञान हो जाता है. उन्हें समाज में होनेवाली घटनाओं और चलने वाली गतिविधियों का भी पता होता है. समाज में कौन सी अच्छाइयां है और क्या बुराइयां पनप रही है ये भी उन्हें मालूम होता है.  केवल धार्मिक ही नहीं अपितु व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अदि सभी पहलुओं पर उनकी मजबूत पकड़ होती है और वे उनकी जड़ों पर प्रहार करने की क्षमता भी रखते हैं.

जैन साधुओं का विहार 
विहार और तपस्या के बीच निरंतर स्वाध्याय से उनका ज्ञान भी बढ़ता रहता है और अनेकों साधु साध्वी चलती फिरती लाइब्रेरी बन जाते हैं. आगम और शास्त्रों का ज्ञान निजी अनुभव से मिलकर और भी तीक्ष्ण और उपयोगी बन जाता है. उनके त्याग तप के कारण सभी समाजों में उनका आदर होता है. जैन समाज ही नहीं अपितु सर्व समाज के लिए उनका योगदान प्रशंसनीय है.

जैन साध्वियों का विहार 
भगवान महावीर एवं परवर्ती आचार्यों का राजसत्ता पर प्रभाव

महाविरोत्तर युग में प्रभावक आचार्यों ने सदा ही राजसत्ता को प्रभावित किया है और उन् पर धर्म का अंकुश बना कर रखा है. उनके ज्ञान और चारित्रवल के आगे सम्राट हमेशा नतमस्तक रहा है. जनमानस पर भी उनका व्यापक प्रभाव रहा है और इस कारण कोई राजा या सम्राट उनकी अवहेलना करने का साहस नहीं कर पाता था.

सम्राट श्रेणिक पर भगवान् महावीर का गहरा प्रभाव था और उसके बाद के युगों में मगध सम्राट चन्द्रगुप्त ने १४ पूर्वाधर अंतिम श्रुतकेवली भद्रवाहु स्वामी से दीक्षा ली थी.

श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी की गुफा 
महाविरोत्तर युग के प्रभावक आचार्य

महापद्मनंद के महामंत्री के पुत्र स्थुलीभद्र आर्य सम्भूति विजय के पास दीक्षित हुए थे. आर्य सुहस्ती एवं आर्य महगिरि के प्रभाव में था सम्राट सम्प्रति का जीवन जिन्होंने जिन धर्म की महती प्रभावना की थी. कालिकाचार्य ने अत्याचारी गर्दभिल्ल राजा के खिलाफ सेना संगृहीत कर उसका अंत किया था और सिद्धसेन दिवाकर ने अठारह देशों के अधिपति उज्जयनी के सम्राट विक्रमादित्य को प्रतिबोध किया था. उड़ीसा में महाराजा खारवेल जैन धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने खंडगिरि और उदयगिरि की प्रसिद्द गुफाओं का निर्माण करवाया था.

कल्पसूत्र में स्थुलभद्र का प्राचीन चित्र  
दक्षिण के कर्णाटक प्रान्त में महाराजा चामुण्डराय को कौन नहीं जनता जिन्होंने गोम्मटेश्वर बाहुवली की प्रतिमा का निर्माण करवाया. गुजरात के निर्माण एवं एकीकरण में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य की भूमिका की तुलना भारत के एकीकरण में चाणक्य की भूमिका से की जाती है. गुजरात नरेश सिद्धराज जय सिंह  पर उनका प्रभाव सर्वविदित है और पाटन नरेश कुमारपाल तो उनके साक्षात् शिष्य ही थे. यह महाराजा कुमारपाल का ही प्रभाव है की आज भी गुजरात देश के सबसे अहिंसक राज्यों में गिना जाता है.

कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य

मध्य एवं मुग़ल काल के प्रभावशाली जैन आचार्य

पाटन नरेश दुर्लभराज ने जिनेश्वर सूरी को "खरतर"की उपाधि से सन्मानित किया था. उनकी परंपरा में अभयदेव सूरी, वल्लभ सूरी, प्रथम दादा श्री जिनदत्त सूरी आदि ने मारवाड़ के अनेक राजाओं को प्रतिबोध कर जैन धर्म अंगीकार करवाया. उन्होंने सिसोदिया, सोलंकी, चौहान, भाटी, पमार, राठोड आदि अनेक वंशों के राजाओं को जैन धर्मानुयायी बनाया. दिल्लीश्वर मदनपाल ने जिनदत्त सूरी के शिष्य द्वितीय दादा मणिधारी जिनचन्द्र सूरी की आज्ञा शिरोधार्य की थी और मदनपाल के निमंत्रण पर ही वे योगिनीपुर (दिल्ली का तत्कालीन नाम) भी पधारे थे.

बादशाह मोहम्मद बिन तुग़लक़ जिनप्रभ सूरी को अपना गुरु मानता था. मुग़ल सम्राट अकबर पर जगतगुरु हीरविजय सूरी एवं चौथे दादा श्री जिनचन्द्र सूरी का प्रत्यक्ष प्रभाव था. इन आचार्यों से प्रभावित हो कर उसने अपने पुरे राज्य में साल में छह महीने अकता (जीवहत्या निषेध) की घोषणा की थी एवं सम्मेतशिखर का पहाड़ (पारसनाथ) यावत्चन्द्र्दिवाकरौ श्वेताम्बर जैनों के नाम कर दिया था. मुग़ल बादशाह जहांगीर जिनचन्द्र सूरी को बड़े गुरु के नाम से सम्वोधित करता था और उसने भी अकबर के अकता सम्वन्धी फरमानों को नए सिरे से जारी किया था. यदि मुग़ल बादशाह अकबर जीवहत्या के विरोध में फरमान जारी कर सकता है तो क्या आज की प्रजातान्त्रिक सरकार मांस निर्यात पर प्रतिवंध नहीं लगा सकती?

अकबर को प्रतिबोध करते हुए चतुर्थ दादा श्री जिन चंद्र सूरी

जैन श्रमण: आत्मसाधना एवं लोक कल्याण का समन्वय

इस प्रकार प्राचीनकाल से ले कर मध्ययुग तक जैन आचार्यों / मुनियों ने सम्राटों, राजाओं, मंत्रियों को अपनी आत्मसाधना, ज्ञान और चारित्र वल से प्रभावित किया, अहिंसा का उद्घोष कराया और जयवंत जिनशासन की प्रभावना की. यहाँ प्रश्न उठता है की जैन साधु अत्मसाधक होते हैं तो फिर उन्हें संसारी कार्यों से क्या लेना देना? जैन श्रमण जब आत्म साधना नहीं करते तब क्या करते हैं या उन्हें क्या करना चाहिए? वास्तविकता ये है की कोई भी व्यक्ति लगातार आत्मसाधना नहीं कर सकता और जब आत्मसाधना नहीं करते तब जिनधर्म की आराधना और लोकोपकार के कार्य करते हैं. सम्राटों का आचार्यों के चरणों में झुकना उनके अहंकार के लिए नहीं अपितु लोक कल्याण के लिए होता है. आचार्यों का प्रभाव राजाओं और सम्राटों को सुशासन और लोककल्याण के लिए प्रेरित करता है, उन्हें कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर स्थापित करता है.

वीडियो जैन धर्म में अहिंसा: महावीर की कथा

 वर्त्तमान के सभी जैनाचार्यों, मुनियों से मेरा निवेदन है की इस दिशा में विचार करें और संगठित हो कर अपने संयम और तपोवल से देश, समाज और राजनीती को नई दिशा दें. समाज के श्रेष्ठि वर्ग भी यदि अपने नाम के पीछे न भाग कर ऐसे कार्यों में श्रमण समुदाय का सहयोग करे तो इस उत्तम कार्य को गति मिलेगी. हम अपने अपने संप्रदाय, गच्छ, मत-मतान्तर की संकीर्णता भूलकर इस वृहत्तर यज्ञ में अपना योगदान करें. अपने अपने संप्रदाय की मान्यताओं को अपने धर्मस्थानों (मंदिर, उपाश्रय, स्थानक आदि) तक ही सीमित रखें, एक दूसरे की आलोचना न करें और महावीर के मूल सिद्धांतों जैसे अहिंसा, करुणा, अनेकांत अदि को प्रसारित करने में अपना योगदान करें.

सशक्त और समृद्धिशाली जैन समाज

जैन समुदाय एक सशक्त और समृद्धिशाली समाज है. इस समाज की साक्षरता दर देश में सबसे अधिक है और देश की समृद्धि में सर्वाधिक योगदान है. धार्मिक एवं सेवाकार्यों में दान देने की प्रवृत्ति भी है. जैन समाज प्रतिवर्ष खरबों रूपये धार्मिक आयोजनों में खर्च भी करता है परन्तु अफ़सोस की बात है की देश के सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षितिज में जैनो का प्रभाव नगण्य ही है.

प्रमुख जैन उद्योगपति गौतम अडानी 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीख

मैं पुनः अपनी मूल बात पर आता हूँ की हमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघसे सीखना चाहिए की किस तरह उन्होंने कम पैसे खर्च कर भी देश की सांस्कृतिक उन्नति में अपना योगदान किया और अंततः राजनैतिक वर्चस्व भी प्राप्त किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश को दो दो यशस्वी प्रधानमंत्री भी दिए. हम भी एक वर्ष के लिए अपना एजेंडा तय कर लें और अपने सभी संसाधनों को उस दिशा में मोड़ दें. अहिंसा हमारा मुख्य धर्म है और पशुओं के क़त्ल को रोकने की दिशा में हमारा यह प्रयत्न हो तो कितना अच्छा होगा. कम से कम देश में नए कत्लखाने न खुलें, जो खुले हुए हैं वो बंद हो औरअग्रणी मांस निर्यातकहोने का जो कलंक इस महान भारत देश पर है वो मिट जाये.

वीडियो गुरु गोलवलकर जी का उद्वोधन - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

इस काम के लिए जैन साधु साध्वियों और श्रावक श्राविकाओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीख ले कर उनके जैसे काम करना चाहिए या नहीं इस बात पर अवश्य विचार करें.


राजस्थान में खून की नदी न बहाने दें


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